Pahalgam Terror Attack-Who is Responsible?
पहलगाम कश्मीर आतंकी हमला: जिम्मेदार कौन ?
(NB7)- पहलगाम, कश्मीर में 22 अप्रैल 2025 को हुआ आतंकी हमला, जिसमें 26 लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए, ने सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इस घटना में सुरक्षा बलों की भारी लापरवाही की भूमिका पर विचार किया जा सकता है, जो उपलब्ध जानकारी और विश्लेषण पर आधारित हैं:
सुरक्षा में चूक- अनेक सबूत:
सुरक्षा कर्मियों की अनुपस्थिति : कैसे हाई सिक्योरिटी ज़ोन ?
-हमला बैसरन घाटी में हुआ, जिसे "मिनी स्विट्जरलैंड" के नाम से जाना जाता है और यह पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है। रिपोर्ट्स के अनुसार, 5.5 किलोमीटर के पहलगाम-बैसरन मार्ग पर कोई पुलिस पिकेट या सुरक्षा चौकी नहीं थी, जबकि वहां 2000 से अधिक पर्यटक मौजूद थे। यह एक हाई-सिक्योरिटी ज़ोन होने के बावजूद सुरक्षा की कमी को दर्शाता है।
-एएफएसपीए (AFSPA) लागू होने के बावजूद, इतने संवेदनशील क्षेत्र में सुरक्षा बलों की गश्त या तैनाती न होना गंभीर लापरवाही का संकेत है। दिन दहाड़े लगभग आधे घंटे तक चले नर संहार से लड़ने के लिए एक भी सुरक्षा कर्मी नहीं था
खुफिया जानकारी की कमी:
-सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसारहमले से पहले आतंकियों ने रेकी की थी।
-सोती हुई खुफिया एजेंसियों को इसकी भनक नहीं लगी, जो खुफिया तंत्र की कार्यप्रणाली और लगातार विफलता को उजागर करता है।
-विश्लेषकों का कहना है कि लंबे समय तक आतंकी गतिविधियों में कमी के कारण सुरक्षा बल निश्चिंत हो गए थे, जिससे सतर्कता में कमी आई।
-विशेषज्ञों के अनुसार भारतीय खुफिया एजेंसियां अपने काम करने के तरीकों में अभी तक प्रोफेशनल नहीं बन सकीं हैं अधिकतर घटनाओं की जानकारी इन्हे दूसरी एजेंसियों से मिलती है साथ ही आम लोगों में ख़ुफ़िया तंत्र का आभाव होने से भी इनके काम करने के तरीके पुराने ढर्रे पर चलते हैं.
तत्काल प्रतिक्रिया में देरी:
-हमले के बाद डेढ़ घंटे तक घटनास्थल पर कोई मदद नहीं पहुंची, जो आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र की कमजोरी को दिखाता है।
-सीआरपीएफ और क्विक रिएक्शन टीम (QAT) को बाद में भेजा गया, लेकिन तुरंत कार्रवाई की कमी ने नुकसान को बढ़ाया।
भौगोलिक और रणनीतिक कमियां:
-बै
सरन घाटी का दुर्गम इलाका और घने जंगल आतंकियों के लिए छिपने और हमला करने के लिए अनुकूल थे। इस क्षेत्र में नियमित गश्त या निगरानी की कमी ने आतंकियों को मौका दिया।-पर्यटक सीजन के चरम पर होने के बावजूद, इस क्षेत्र में अतिरिक्त सुरक्षा इंतजाम नहीं किए गए, जो एक रणनीतिक चूक थी।
सुरक्षा में लगी एजेंसियों का अंग्रेजों के जमाने का सुरक्षा तंत्र :
यदि ये घटना चीन या इजराइल जैसे देशों में हुई होती तो वहां मौजूद सुरक्षा तंत्र उसी स्थान पर पर्यटकों के भेष में पर्यटकों के बीच मौजूद होता और एक भी आतंकी इस तरह आराम से बेखौफ हो कर ऐसी घटना को अंजाम नहीं दे पाता, तथा सुरक्षा कर्मी पर्यटकों के बीच से निकल कर आतंकियों को वहीँ ढेर कर सकते थे, किन्तु ये भारतीय सुरक्षा व्यवस्था है जो आज भी लोकल पुलिस के काम करने के ढुलमुल तरीके पर आधारित है.
सुरक्षा बलों की लापरवाही को कम करने वाले तर्क और कुतर्क:
आतंकियों की रणनीति::
-आतंकियों ने सैन्य वर्दी पहनकर हमला किया, जिससे पर्यटकों और स्थानीय लोगों में भ्रम पैदा हुआ। यह उनकी सुनियोजित रणनीति थी, जिसका मुकाबला करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
-हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली, और इसे पाकिस्तान समर्थित माना जा रहा है। ऐसी बाहरी साजिशों को पूरी तरह रोकना मुश्किल होता है।
सुरक्षा बलों की सक्रियता:
-हमले के बाद सुरक्षा बलों ने तुरंत तलाशी अभियान शुरू किया, और दो आतंकियों को मार भी गिराया गया। यह दर्शाता है कि प्रतिक्रिया में पूरी तरह निष्क्रियता नहीं थी। किन्तु क्या ये वही आतंकी थे जिन्हें मारा गया ?
-सेना, सीआरपीएफ, और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने संयुक्त रूप से सर्च ऑपरेशन चलाया, और सैकड़ों लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया।
अब इसे तर्क कहें या कुतर्क या सांप निकल जाने पर लकीर पीटते सुरक्षा कर्मी और परेशान होती जनता।
पहले की तुलना में कम घटनाएं: रक्षा मंत्री का तर्क या कुतर्क :-
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि पहले की तुलना में आतंकी घटनाएं कम हुई हैं, और सुरक्षा बल पूरी तरह सजग हैं। यह दर्शाता है कि लापरवाही को अभी भी इस घटना के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा रहा।
पहले की तुलना में कम घटनाएं: रक्षा मंत्री का तर्क या कुतर्क :-
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि पहले की तुलना में आतंकी घटनाएं कम हुई हैं, और सुरक्षा बल पूरी तरह सजग हैं। यह दर्शाता है कि लापरवाही को अभी भी इस घटना के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा रहा।
निष्कर्ष क्या निकला :-
पहलगाम हमले में सुरक्षा बलों की लापरवाही स्पष्ट रूप से एक प्रमुख कारण है।
संवेदनशील क्षेत्र में सुरक्षा कर्मियों की अनुपस्थिति, खुफिया जानकारी की कमी, और तत्काल प्रतिक्रिया में देरी ने आतंकियों को हमला करने का मौका दिया।
हालांकि, आतंकियों की सुनियोजित रणनीति और बाहरी समर्थन ने भी स्थिति को जटिल बनाया।
यह घटना सुरक्षा तंत्र की खामियों, जैसे समन्वय की कमी, निष्क्रियता और निश्चिंतता, को उजागर करती है। साथ ही, यह भी सच है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सुरक्षा बलों की चुनौतियां बहुत जटिल हैं, और हर हमले को पूरी तरह रोकना संभव नहीं होता।
फिर भी, इस घटना ने सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने की जरूरत है, खासकर पर्यटक क्षेत्रों में बिना वर्दी वाले सुरक्षा कर्मियों की बहुतायत मौजूदगी से इस तरह की घटनाओं को रोकने में सहायता मिलेगी, और ऐसे क्षेत्र आम जनता के लिए सुरक्षित बन सकेंगे। और देश के दुश्मन खासकर पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी और सेना आसानी से भारत में घूस कर अशांति नहीं फैला सकेंगें।