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महागठबंधन (MGB – विपक्षी गठबंधन) ने लगभग 22 सीटें जीती और लगभग 13 सीटों पर आगे
अन्य पार्टियों/स्वतंत्र अभ्यर्थियों ने लगभग 5 सीटें जीती और लगभग 1 सीट पर आगे चल रही है।
कुल विधानसभा सीटें: 243
लोग सड़कों पर उतरते हैं, स्लोगन गूंजते हैं — “I Can’t Breathe”, “Save My Lungs”
लेकिन सच्चाई यह है कि ये उपाय बीमार हवा के लक्षणों पर मरहम हैं, बीमारी की जड़ पर
असली समस्या: वैज्ञानिक समझ की कमी
दिल्ली का प्रदूषण केवल वाहनों का धुआं या पराली का धुआं नहीं है, बल्कि यह भौगोलिक,
मौसमीय और मानव-जनित कारकों का मिला-जुला प्रभाव है।
दिल्ली का स्थान उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र में है —
दिल्ली के नजदीक उत्तर में 200 - 300 किलोमीटर दूर ठण्डे पहाड़ और पश्चिम में रेगिस्तान जैसे भू-
इस स्थिति में हवा ऊपर नहीं उठती और प्रदूषण नीचे फंस जाता है — जिसे वैज्ञानिक “थर्मल
दिल्ली की कारें-गाड़ियां ( CNG /पेट्रोल ) असली विलेन नहीं
सरकारें अकसर सबसे आसान रास्ता चुनती हैं — वाहनों को जिम्मेदार ठहरा देना।
केवल 10 या 15 साल पुरानी कारों पर बैन लगाना, या केवल BS-IV गाड़ियों को हटाना, कोई समाधान नहीं, बल्कि भ्रम है।
बाकी 70 % हिस्सा आता है — धूल, औद्योगिक धुआं, पराली, निर्माण कार्य और मौसमीय फंसे प्रदूषकों से।
पुराने वाहनों का योगदान सीमित है, लेकिन सड़कों पर जाम और ट्रैफिक मैनेजमेंट की अव्यवस्था से
प्रदूषण का हल किसी एक पार्टी या नारे से नहीं निकल सकता।
पर्यावरण वैज्ञानिकों, मौसम विशेषज्ञों और शहरी योजनाकारों को नीति-निर्धारण में शामिल करने की।
दीर्घकालिक समाधान पर काम करने की — जैसे ग्रीन ज़ोन, हवा के प्रवाह के लिए खुले क्षेत्र, और धूल
हर नागरिक को यह समझना होगा कि गाड़ियों, फैक्ट्रियों या सरकारों को दोष देने से पहले, हमें कारण की जड़ तक जाना होगा।
जब जनता वैज्ञानिक सोच के साथ निर्णय लेगी — तभी सही प्रतिनिधि और सही नीति चुनी जाएगी।
NB7-नई दिल्ली- मुख्य घटनाक्रम
भारत के सबसे व्यस्त हवाई अड्डों में से एक, इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (IGI) में गुरुवार शाम से तकनीकी गड़बड़ी शुरू हुई जिसमें मुख्यतः एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) का सिस्टम प्रभावित हुआ।
समस्या ऑटोमैटिक मैसेज स्विचिंग सिस्टम (AMSS) में सामने आई, जिससे फ्लाइट-प्लानिंग का आटोमेटिक डेटा कंट्रोल टावरों तक नहीं पहुँच पाया।
इस कारण एयर ट्रैफिक कंट्रोल को मैन्युअल रूप से फ्लाइट प्लान प्रोसेस करना पड़ा, जिससे संचालन बेहद धीमा हो गया और शनिवार तक करीब 800 से अधिक फ्लाइटें प्रभावित हुईं।
फिलहाल स्थिति सुधार की ओर है — लगभग 36 घंटे बाद कुछ सुधार दिखने लगे हैं, लेकिन कई यात्रियों को लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ी है।
AMSS वह सिस्टम है जो एयर-लाइंस और ATC के बीच फ्लाइट प्लान, मौसम संबंधी जानकारी, मार्ग परिवर्तन आदि स्वचालित रूप से ट्रांसमिट करता है।
इस सिस्टम के डाउन होने से कंट्रोलर्स को मैन्युअल तरीके से हर फ्लाइट के लिए डेटा कंपाइल करना पड़ा — एक बेहद समय-खपत प्रक्रिया।
इसके ऊपर, कुछ स्रोतों ने बताया है कि यह सिर्फ तकनीकी गड़बड़ी नहीं बल्कि संभावित मालवेयर या सायबर-हैकर हमले की जाँच हो रही है।
यात्रियों और एयरलाइंस का हाल
यात्रियों को लंबी कतारों, निरस्तांत जानकारी और हवाई अड्डे पर भूख-प्यास के साथ इंतजार करना पड़ा। “हवाईअड्डे का खाना तो अब ले नहीं सकते” जैसी शिकायतें सामने आईं।
कई एयरलाइंस ने यात्रियों को सलाह दी कि वे अपनी फ्लाइट स्थिति के लिए लगातार अपडेट देखें क्योंकि औसत देरी 50-55 मिनट तक पहुँच गई थी। The Times of India+1
NB7-बिलासपुर- छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में सोमवार शाम 4 बजे एक MEMU पैसेंजर ट्रैन ने सिग्नल को पार करते हुवे खड़ी मालगाड़ी को पीछे से टक्कर मार दी जिसकी वजह से EMU ट्रेन मालगाड़ी पर चढ़ गयी और एक बड़ा हादसा हो गया, इस एक्सीडेंट की ख़ास बात ये रही की इसमें EMU ट्रेन के लोकोपायलट ( ड्राइवर ) ने दिन दहाड़े 4 बजे भरपूर लापरवाही के चलते इस हादसे को अंजाम दे दिया और लगभग 8 लोगों की मौत हो गयी और सैकड़ों घायल हो गए.
Delhi में हाल-ही में सरकार ने एक बड़े सामाजिक-प्रदूषण अभियान के हिस्से के रूप में क्लाउड सीडलिंग यानी कृत्रिम बारिश का प्रयोग किया।
सरकार को अब यह तय करना होगा कि क्या और अधिक क्लाउड सीडलिंग के प्रयोग किये जाएँ या अन्य उपाय अपनाये जाएँ।
साथ ही, इस प्रकार के प्रयोगों को सार्वजनिक विश्वास देने होंगे — क्योंकि वैज्ञानिकों ने पहले ही चेतावनी दी है कि क्लाउड सीडलिंग किसी भी मौसम-प्रदूषण समस्या का जादुई समाधान नहीं है।
आगे का अगला कदम हो सकता है: आधारित डेटा-संग्रह (भावी परीक्षणों के लिए वातावरण की स्थिति) करना, वायु प्रदूषण को जड़ से मिटाने वाले कदम (वाहनों, निर्माण, बैरिंग खेती) लेना, और जब-जब मौसम अनुकूल हो तब ही क्लाउड सीडलिंग करना।
बादल वे होते हैं जिनमें बहुत-सारे छोटे-छोटे पानी-बारीक कण (ड्रॉपलेट्स) या बर्फ के क्रिस्टल होते हैं, जो ठंडे होने पर संघनित होकर बरसात या बर्फ में परिवर्तित हो सकते हैं।
लेकिन कभी-कभी बादल में पर्याप्त संघनन कण या बारीक संरचना नहीं होती जिससे बारिश शुरू हो सके — यहाँ क्लाउड सीडलिंग का प्रयोग आता है।
क्लाउड सीडलिंग में विमान या जमीन से “नाभिक” (nuclei) जैसे सिल्वर आयोडाइड (AgI), या नमक/लवण आदि छोड़े जाते हैं, जो पानी के कणों को बड़ा होने में मदद करते हैं और उन्हें गिरने योग्य बनाते हैं।
यदि बादल में पर्याप्त नमी (वॉटर वाष्प) हो, उपयुक्त तापमान हो, सही ऊँचाई हो — तब यह तकनीक काम कर सकती है और थोड़ी-बहुत बारिश ला सकती है।
लेकिन बहुत महत्वपूर्ण बात: यह तकनीक खुद-से बादल नहीं बना सकती, और हर बादल में काम नहीं करती, और बारिश का स्तर (quantity) अक्सर बहुत सीमित होता है।
यदि बादल में पर्याप्त नमी नहीं है (जैसे बहुत सूखा मौसम), तो सीडलिंग की संभावना बहुत कम हो जाती है। दिल्ली में ऐसा ही हुआ – बादल में सिर्फ 10-15% नमी पाई गई।
प्रभाव अक्सर बहुत छोटा होता है — उदाहरण के लिए कुछ प्रतिशत ही बारिश बढ़ा सकती है, व्यापक मॉडिफिकेशन नहीं।
इसलिए, क्लाउड सीडलिंग को “जुड़े हुए” समाधानों (emissions reduction, स्रोत नियंत्रण) के साथ ही देखना चाहिए — अकेले यह प्रदूषण को कट कर देने वाला उपाय नहीं है
नमी की कमी: दिल्ली-एनसीआर में परीक्षण के समय वायुमंडल में नमी बहुत कम थी — लगभग 10-15% के बीच। इस स्थिति में क्लाउड सीडलिंग काफी मुश्किल।
मौसम उपयुक्त नहीं था: सीडलिंग के लिए उपयुक्त बादल, तापमान, व नमी का संतुलन होना जरूरी है — जो दिल्ली में मौजूद नहीं था।
प्रत्याशा बनाम वास्तविकता: कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह पहल पहले से ही चुनौतीपूर्ण थी क्योंकि यह मौसम व प्रदूषण की जटिलता से लड़ने वाला अकेला उपाय नहीं था।
प्रभाव सीमित था: बताया गया कि परीक्षण के बाद वायु गुणवत्ता में कुछ गिरावट हुई हो सकती है, लेकिन वह पर्याप्त नहीं थी एवं बारिश नहीं हुई।
अब आगे क्या किया जाना चाहिए? — सुझाव और अगला कदम
स्रोत-स्तर पर कार्य: वाहनों से निकलने वाला धुआँ, निर्माण-कर्म, खेतों में पराली जलाना — ये जड़ हैं व इन्हें नियंत्रण में लाना अनिवार्य। क्लाउड सीडलिंग सिर्फ नतीजे को थोड़ा प्रभावित कर सकती है, कारण नहीं हटाती।
मौसम आधारित रणनीति: भविष्य में क्लाउड सीडलिंग तभी किया जाना चाहिए जब मौसम वैज्ञानिक दृष्टि से अनुकूल हो — यानी बादल हों, उपयुक्त नमी हो। बांध-मौके पर डेटा-संपादन किया जाना चाहिए।
पारदर्शिता व समीक्षा: खर्च, परिणाम, डेटा को सार्वजनिक किया जाना चाहिए ताकि जागरूक नागरिक जान सकें कि क्या काम हुआ, क्या नहीं।
वैकल्पिक उपायों पर बल: जैसे ‘समय-बंदी निर्माण’, ‘वाहन अनुशासन’, ‘ग्रीन बेल्ट बढ़ाना’, तथा ‘स्मॉग गन/एयर प्यूरीफायर’ जैसी स्थानीय उपाय।
लंबी अवधि-नीति बनाना: वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सिर्फ मौसम-परिर्वतन उपाय नहीं, बल्कि स्थायी नीति-निर्माण की जरूरत है।
NB7-नई दिल्ली / लंदन: ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर (Keir Starmer) ने भारत दौरे के दौरान साफ कहा है कि वे भारतीयों के लिए वीज़ा नियमों में कोई ढील नहीं देंगे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यूके-इंडिया ट्रेड डील (UK-India Trade Deal) में वीज़ा मुद्दे का कोई संबंध नहीं है।
स्टार्मर ने कहा कि उनका भारत दौरा व्यापार, निवेश और रोजगार बढ़ाने पर केंद्रित है, न कि वीज़ा नीतियों में बदलाव पर। उनके अनुसार, "यह यात्रा बिज़नेस-टू-बिज़नेस संबंध मजबूत करने के लिए है।"
इस कदम से दोनों देशों के बीच शैक्षणिक और सांस्कृतिक संबंध और मजबूत होंगे।
यूके का लक्ष्य — ग्लोबल टैलेंट, न कि किसी देश विशेष को प्राथमिकता
British PM स्टार्मर ने कहा कि ब्रिटेन की नीति ग्लोबल टैलेंट को आकर्षित करने की है, न कि किसी एक देश के लिए वीज़ा नियमों को आसान बनाने की। इससे स्पष्ट होता है कि यूके सरकार भारतीयों को वीज़ा में विशेष छूट देने के पक्ष में नहीं है।जब पत्रकारों ने उनसे भारत द्वारा रूसी तेल (Russian Oil) खरीद पर सवाल पूछा, तो उन्होंने सीधे जवाब देने से बचते हुए कहा कि वे “शैडो फ्लीट” (Shadow Fleet) यानी प्रतिबंधों को दरकिनार करने वाले टैंकरों की गतिविधियों पर ध्यान दे रहे हैं।
यह सौदा जुलाई 2025 में हुआ था।
इसके तहत कई सामानों (goods) पर टैक्स या आयात शुल्क (tariffs) कम होंगे।
भारतीय कपड़े, जूते, खाद्य पदार्थ आदि बहुत से भारतीय निर्यात (exports) मामलों में लगभग शुल्क-मुक्त पहुँच पाएँगे UK मार्केट में।
विद्यार्थियों और वीज़ा धारकों के लिए वर्तमान नियम
भारतीय छात्रों की संख्या UK में दाखिले (study visa) के मामले में थोड़ी कमी आई है।
नए नियमों के अनुसार, अधिकांश छात्रों के लिए dependents (पति/पत्नी या बच्चे) को वीज़ा नहीं मिलती है, सिवाय कुछ खास कोर्स-जैसे PhD या लंबे समय के postgraduate शोध-कोर्स।
छात्रों को इंग्लैंड-लाइफ़-लिविंग खर्च (living expenses) दिखाना ज़रूरी है, बैंक बैलेंस आदि का समय-समय पर सत्यापन होता है।
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राजनीतिक और आर्थिक मायने
UK के अंदर, आव्रजन (immigration) और वीज़ा नीतियाँ (visa policy) राजनीतिक विवाद का विषय हैं। कई लोगों का मानना है कि वीज़ा नियमों में ढील देने से जनता में असमर्थता (dissatisfaction) बढ़ सकती है। India Today+1
भारत के साथ व्यापार सौदे से UK को निर्यात, नौकरियों, आर्थिक साझेदारी में लाभ की उम्मीद है। लेकिन इसके साथ यह साफ किया गया है कि वीज़ा नियमों में बदलाव इस सौदे का।
13 जून 2025 को ब्लैक बॉक्स (कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर और डिजिटल फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर) बरामद कर लिया गया। विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB) इसकी जांच कर रहा है।
अहमदाबाद विमान हादसा 2025-सबसे ज्यादा चर्चा में जो रहे :
1 - अहमदाबाद के एक 17 साल के लड़के ने अनजाने में हादसे का वीडियो रिकॉर्ड किया, जो वायरल हो गया।
हादसे में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की भी जान गई, जिससे राज्य में शोक की लहर है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने ग्रीन कॉरिडोर बनाकर बचाव कार्यों को तेज किया।
एयर इंडिया ने आपातकालीन केंद्र बनाया और परिवारों की मदद के लिए सपोर्ट टीमें तैनात कीं। एयरलाइन ने AI171 फ्लाइट नंबर को अपने शेड्यूल से हटा दिया।
दोनों इंजनों के एक साथ बंद होने की संभावित वजहें
NB7-अहमदाबाद: 12 जून 2025 को अहमदाबाद में हुए एक भयानक विमान हादसे ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। एयर इंडिया का विमान AI-171, जो बी.जे. मेडिकल कॉलेज के रेजिडेंट डॉक्टर्स हॉस्टल के पास क्रैश हो गया, उसमें 204 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है।
सनसनीखेज खुलासा: हादसे में मरने वालों में मेडिकल कॉलेज के कई छात्र भी शामिल हैं, जो उस समय हॉस्टल में थे। इस खबर ने पूरे शहर में मातम का माहौल बना दिया है।
डीएनए सैंपलिंग: मृतकों की पहचान का इकलौता रास्ता
पुलिस कमिश्नर ने पुष्टि की कि मृतकों की पहचान के लिए उनके परिजनों के डीएनए सैंपल लिए जाएंगे। यह प्रक्रिया बी.जे. मेडिकल कॉलेज के ग्राउंड फ्लोर पर शुरू हो चुकी है। अस्पताल प्रशासन ने परिजनों से अपील की है कि मृतकों के माता-पिता, बच्चे या नजदीकी रिश्तेदार डीएनए टेस्ट के लिए संपर्क करें ताकि शवों की पहचान जल्द हो सके।
नई जानकारी: कुछ शव इतनी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हैं कि उनकी पहचान सामान्य तरीकों से असंभव है। डीएनए टेस्टिंग ही अब एकमात्र रास्ता है।
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