ब्रेकिंग न्यूज़: ईरान ने खाड़ी देशों में अमेरिकी ठिकानों पर मिसाइल हमले किए!
क्या IRAN-ISRAEL युद्ध और फैल जायेगा ?
NB7 Delhi-ईरान ने कतर, बहरीन और इराक में अमेरिकी ठिकानों पर मिसाइल हमले किए। 2025 के युद्ध में अमेरिका का अगला कदम क्या होगा?कतर: ईरान ने कतर के अल उदेद एयर बेस पर छह मिसाइलें दागीं, जो मध्यपूर्व में अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा है।
बहरीन और इराक: कुछ खबरों में कहा गया कि ईरान ने बहरीन में अमेरिकी नौसेना के ठिकाने और इराक में सैन्य अड्डों पर भी हमले किए, लेकिन ये जानकारी पक्की नहीं है।
प्रतिक्रिया: कतर ने हमले की निंदा की और अपने हवाई क्षेत्र को कुछ समय के लिए बंद कर दिया।
ईरान के हमलों के बाद, अब अमेरिका सख्त जवाब की तैयारी में है।
सैन्य कार्रवाई: राष्ट्रपति ट्रम्प ने चेतावनी दी कि अगर ईरान और हमले करता है, तो अमेरिका “ज़्यादा ताकत” से जवाब देगा। इसमें ईरान के सैन्य ठिकानों या तेल कारखानों पर हमले हो सकते हैं।
ज़्यादा रक्षा: अमेरिका कतर, बहरीन, और इराक में अपने ठिकानों पर और सैनिक, जहाज़, और पैट्रियट मिसाइल सिस्टम भेज सकता है।ईरान के सहयोगियों पर हमला: अमेरिका ईरान समर्थित समूहों, जैसे लेबनान में हिज़बुल्लाह, पर हमला कर सकता है।
आर्थिक दबाव: अमेरिका ईरान के तेल निर्यात पर और सख्त पाबंदियाँ लगा सकता है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रैम्प बड़ा युद्ध नहीं चाहता, लेकिन अपने सैनिकों की सुरक्षा के लिए सख्त कदम उठा सकता है।
क्यों है ये अहम? ईरान ने स्ट्रेट ऑफ़ होर्मुज़ बंद करने की धमकी दी है, जिससे दुनिया का 20% तेल रुक सकता है। इससे पेट्रोल की कीमतें बढ़ सकती हैं, और भारत जैसे देशों को नुकसान हो सकता है।
हमारे साथ अपडेट रहें: इस युद्ध की हर खबर के लिए हमारे ब्लॉग को फॉलो करें। अपनी राय कमेंट करें—आपको क्या लगता है, अमेरिका अब क्या करेगा?
US Attacks Iran’s Nuclear Program Sites: Now Russia Openly Supports Iran
अमेरिका का ईरान पर हमला : ईरान के परमाणु प्रोग्राम साईट नष्ट- पेंटागन, रूस की ईरान को मदद
NB7-Washington, June 22, 2025 – अमेरिका का इजरायल-ईरान युद्ध में कूदने से ईरान के तीन परमाणु केंद्रों – फोर्डो, नतांज और इस्फहान – पर अमेरिका नेहवाई हमले किए। अमेरिका ने 75 सटीक हथियारों का इस्तेमाल किया, जिनमें 14 "बंकर बस्टर" बम शामिल थे।रूस और चीन, जो ईरान के बड़े सहयोगी हैं, ने अमेरिका और इजरायल की कार्रवाई की निंदा की है, लेकिन अभी यह साफ नहीं है कि वे ईरान को खुल कर सैन्य मदद देंगे या नहीं ।
चीन, जो ईरान से बहुत सारा तेल खरीदता है, ने भी हमलों की निंदा की और शांति की बात की। चीन शायद ईरान को तकनीकी या आर्थिक मदद दे सकता है, लेकिन सीधे युद्ध में शामिल होने की संभावना कम है। हाल ही में तीन चीनी मालवाहक विमानों के ईरान में उतरने की खबर आई, लेकिन हथियारों की कोई पुष्टि नहीं हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि रूस और चीन अभी डर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन बड़ा युद्ध नहीं चाहते।
होर्मुज जलडमरूमध्य, जिसे विश्व की ऊर्जा आपूर्ति की मुख्य नस कहा जाता है, अमेरिका के ईरान पर हमले से फिर दुनियाभर में सुर्खियों में है। हाल ही में ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के कारण इस जलमार्ग को बंद करने की धमकी ने दुनिया भर के देशों की चिंता बढ़ा दी है।
होर्मुज जलडमरूमध्य:
होर्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) पश्चिम एशिया में स्थित एक संकरा जलमार्ग है, जो फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है। यह जलडमरूमध्य ईरान के दक्षिणी तट और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) तथा ओमान के मुसंदम प्रायद्वीप के बीच फैला हुआ है। इसका भौगोलिक आकार डमरू जैसा है, और इसकी चौड़ाई सबसे संकरे स्थान पर मात्र 33 किलोमीटर है, जबकि इसकी लंबाई लगभग 167 किलोमीटर है।
इस जलमार्ग में कीश्म, होर्मुज, और हेंजम जैसे प्रमुख द्वीप स्थित हैं। यह जलडमरूमध्य न केवल दो बड़े जल निकायों को जोड़ता है, बल्कि वैश्विक व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति के लिए एक महत्वपूर्ण चोकपॉइंट भी है।
वैश्विक तेल व्यापार में महत्वहोर्मुज जलडमरूमध्य को विश्व का सबसे महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग माना जाता है, क्योंकि इसके माध्यम से विश्व के लगभग 20-25% कच्चे तेल और एक तिहाई तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) की ढुलाई होती है। सऊदी अरब, ईरान, कुवैत, इराक, और कतर जैसे तेल उत्पादक देश अपने अधिकांश तेल निर्यात के लिए इसी मार्ग पर निर्भर हैं। 2018 के आंकड़ों के अनुसार, प्रतिदिन लगभग 21 मिलियन बैरल तेल इस जलमार्ग से गुजरता है, जो वैश्विक पेट्रोलियम खपत का लगभग 21% है।
भारत, चीन, जापान, और दक्षिण कोरिया जैसे देश अपनी तेल आवश्यकताओं के लिए इस मार्ग पर निर्भर हैं। भारत अपनी तेल जरूरतों का 83% आयात करता है, और इसका अधिकांश हिस्सा होर्मुज जलडमरूमध्य के रास्ते आता है।
भू-राजनीतिक और सामरिक महत्व
होर्मुज जलडमरूमध्य का सामरिक महत्व इसके संकरे रास्ते और भौगोलिक स्थिति के कारण और भी बढ़ जाता है। इस जलमार्ग पर नियंत्रण रखने वाला देश या समूह वैश्विक व्यापार और सैन्य गतिविधियों पर नजर रख सकता है। इतिहास में, जलडमरूमध्य हमेशा से अंतरराष्ट्रीय खींचतान का केंद्र रहे हैं। उदाहरण के लिए, 1980 के दशक में ईरान-इराक युद्ध के दौरान "टैंकर युद्ध" में दोनों देशों ने एक-दूसरे के तेल टैंकरों को निशाना बनाया था।
2025 में, इजरायल-ईरान संघर्ष के चलते यह जलमार्ग फिर से चर्चा में है। ईरान ने 2015 के परमाणु समझौते से संबंधित अपने दायित्वों को वापस लेने और इस जलमार्ग को बंद करने की धमकी दी है। अमेरिका का पांचवां नौसैनिक बेड़ा, जो बहरीन में तैनात है, इस क्षेत्र की निगरानी करता है, और किसी भी अवरोध की स्थिति में हस्तक्षेप कर सकता है।
तेल की कीमतें: कच्चे तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं, जिसका असर पेट्रोल, डीजल, और अन्य ईंधन की कीमतों पर पड़ेगा।
आपूर्ति श्रृंखला: दुनियाभर की कच्चे तेल की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित करेगा, जिससे आयात-निर्यात पर बुरा असर पड़ेगा।
आर्थिक अस्थिरता: भारत जैसे देश, जो तेल आयात पर निर्भर हैं, को आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
Iran Israel War Updates: will oil Prices shoot ?
ईरान इजराइल जंग: लम्बी चली तो ?
क्या तेल की कीमतें छुएगीं आसमान ?
भारतीय बाज़ारों पर क्या होगा असर:- क्या हैं मायने
ईरान और इज़रायल के बीच हालिया तनाव ने वैश्विक ऊर्जा बाजारों में हलचल मचा दी है।
ईरान इजराइल जंग: भारत पर संभावित प्रभाव
1. चाबहार पोर्ट परियोजना
चाबहार पोर्ट भारत के लिए एक रणनीतिक परियोजना है, जो अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करता है, बिना पाकिस्तान पर निर्भर हुए। भारत ने इस पोर्ट के विकास के लिए अरबों रुपये का निवेश किया है। 2016 में भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय समझौता हुआ था, जिसके तहत चाबहार को क्षेत्रीय व्यापार का केंद्र बनाया जाना था।ईरान इजराइल युद्ध का प्रभाव:
प्रोजेक्ट में देरी: ईरान-इज़रायल युद्ध के कारण चाबहार पोर्ट के विकास में और देरी हो सकती है। अमेरिकी प्रतिबंधों ने पहले ही इस परियोजना को धीमा किया था, और अब युद्ध के कारण बुनियादी ढांचे को नुकसान और सुरक्षा जोखिम बढ़ गए हैं।
अमेरिकी प्रतिबंधों का खतरा: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में चाबहार पोर्ट परियोजना के लिए दी गई छूट को रद्द कर दिया है, जिससे भारत का निवेश खतरे में पड़ सकता है।
मध्य एशिया तक पहुंच में रुकावट: यदि ईरान कमजोर होता है या युद्ध के कारण इसकी बुनियादी सुविधाएं नष्ट होती हैं, तो भारत की मध्य एशिया तक व्यापारिक पहुंच कमजोर हो सकती है, जो भारत की भू-रणनीतिक स्थिति को प्रभावित करेगा।
IMEEC एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसे 2023 के G-20 शिखर सम्मेलन में मंजूरी मिली थी। यह भारत को मध्य पूर्व और यूरोप से जोड़ने वाला व्यापारिक गलियारा है, जो चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) का जवाब है।
3. अन्य व्यापारिक और रक्षा सहयोग
भारत और ईरान के बीच व्यापारिक संबंध, जैसे चावल, रसायन, और फल-सब्जियों का निर्यात, भी प्रभावित हो सकते हैं। 2024-25 में भारत ने ईरान को 1.2 अरब डॉलर का निर्यात और 441 मिलियन डॉलर का आयात किया था। युद्ध के कारण यह व्यापार कम हो सकता है।
4. ईरान इजराइल युद्ध और तेल की कीमतों में उछाल
भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरत का 85% से अधिक आयात करता है, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व से आता है। यदि ईरान और इज़रायल के बीच युद्ध के कारण स्ट्रेट ऑफ होर्मुज (जहां से विश्व का 20% तेल आपूर्ति होती है) में व्यवधान होता है, तो तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं। हाल ही में, ब्रेंट क्रूड की कीमतें 7% बढ़कर $74 प्रति बैरल से ऊपर पहुंच गईं, और अगर यह युद्ध और बढ़ता है, तो कीमतें $100 प्रति बैरल तक जा सकती हैं।भारत के लिए क्या हैं मतलब?
पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ेंगी: भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें पहले से ही 132-138 रुपये प्रति लीटर हैं। तेल की कीमतों में $10 प्रति बैरल की वृद्धि से पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 5 रुपये प्रति लीटर तक का इजाफा हो सकता है।
महंगाई बढ़ेगी: तेल की कीमतों में वृद्धि से ट्रांसपोर्ट, खेती, और मैन्युफैक्चरिंग की लागत बढ़ेगी, जिससे खाने-पीने की चीजों से लेकर रोजमर्रा की वस्तुओं तक की कीमतें बढ़ेंगी।
रुपये पर दबाव: तेल आयात के लिए ज्यादा खर्च से भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ेगा, जिससे आयात और महंगा हो सकता है।
5. व्यापार और अर्थव्यवस्था पर असर
भारत ने 2020 से ईरान से तेल आयात बंद कर दिया है, लेकिन स्ट्रेट ऑफ होर्मुज के माध्यम से अन्य देशों (जैसे सऊदी अरब, कुवैत, और यूएई) से तेल आयात करता है। यदि यह मार्ग बंद होता है, तो भारत के तेल आयात में रुकावट आ सकती है, जिससे आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होगी।रिजर्व बैंक की नीतियां प्रभावित होंगी: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने हाल ही में रेपो रेट में 100 बेसिस पॉइंट की कटौती की थी, लेकिन बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण दरों में कटौती रुक सकती है।
6. शेयर बाजार में आ सकता है उतार-चढ़ाव
ईरान-इज़रायल युद्ध की खबरों से शेयर बाजार में अस्थिरता बढ़ी है। भारत का सेंसेक्स 1300 अंक तक गिर गया था।नुकसान: एयरलाइंस, पेंट, टायर, और सीमेंट जैसे क्षेत्र, जो पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भर हैं, प्रभावित होंगे।
फायदा: तेल रिफाइनरी और रक्षा कंपनियों के शेयरों में उछाल देखने को मिल सकता है।
7. भारतीय नागरिकों पर प्रभाव
मध्य पूर्व में भारत के लाखों प्रवासी काम करते हैं। युद्ध बढ़ने से उनकी सुरक्षा और नौकरियों पर खतरा मंडरा सकता है। इसके अलावा, हवाई यात्रा में रुकावट और लंबे मार्गों के कारण टिकटों की कीमतें बढ़ सकती हैं।विश्व पर प्रभाव
1. वैश्विक तेल आपूर्ति पर खतरा
ईरान विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है, जो प्रतिदिन 3.4 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन करता है। इसके तेल निर्यात का 90% चीन को जाता है। इज़रायल ने हाल ही में ईरान के तेल और गैस सुविधाओं, जैसे साउथ पार्स गैस फील्ड और तेहरान रिफाइनरी, पर हमले किए हैं, जिससे तेल और गैस आपूर्ति में रुकावट का खतरा बढ़ गया है।स्ट्रेट ऑफ होर्मुज का महत्व: यह विश्व का सबसे महत्वपूर्ण तेल व्यापार मार्ग है, जहां से 20% तेल और 20% तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) की आपूर्ति होती है। यदि ईरान इस मार्ग को बंद करता है, तो तेल की कीमतें $100 से $120 प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं।
वैश्विक मुद्रास्फीति: तेल की कीमतों में वृद्धि से वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति बढ़ेगी, जिससे केंद्रीय बैंकों को ब्याज दरों में कटौती करने में मुश्किल होगी।
2. अन्य देशों पर प्रभाव
चीन: ईरान का सबसे बड़ा तेल खरीदार है, लेकिन उसके पास रूस, सऊदी अरब, और अन्य देशों से तेल आयात करने की क्षमता है। फिर भी, स्ट्रेट ऑफ होर्मुज में रुकावट से शिपिंग और बीमा लागत बढ़ेगी।यूरोप: यूरोप मध्य पूर्व से बड़ी मात्रा में तेल और गैस आयात करता है। युद्ध के कारण गैस की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे सर्दियों में हीटिंग बिल बढ़ेंगे।
अमेरिका: अमेरिका अब तेल निर्यातक है और मध्य पूर्व पर उसकी निर्भरता कम है। हालांकि, तेल की कीमतों में उछाल से अमेरिकी उपभोक्ताओं पर असर पड़ेगा।