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IRAN ISRAEL War News Update

ब्रेकिंग न्यूज़: ईरान ने खाड़ी देशों में अमेरिकी ठिकानों पर मिसाइल हमले किए!

क्या IRAN-ISRAEL युद्ध और फैल जायेगा ?

NB7 Delhi-ईरान ने कतर, बहरीन और इराक में अमेरिकी ठिकानों पर मिसाइल हमले किए। 2025 के युद्ध में अमेरिका का अगला कदम क्या होगा?

23 जून 2025 को ईरान ने खाड़ी देशों में अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर मिसाइलें दागीं। 

यह हमला अमेरिका के 22 जून को ईरान के परमाणु ठिकानों—फोर्डो, नतांज़, और इस्फहान—पर बमबारी के जवाब में था।

कतर: ईरान ने कतर के अल उदेद एयर बेस पर छह मिसाइलें दागीं, जो मध्यपूर्व में अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा है। 

कतर की हवाई रक्षा ने ज़्यादातर मिसाइलें रोक लीं, और कोई हताहत नहीं हुआ। ईरान ने हमले से पहले अमेरिका और कतर को सूचना दी थी।

बहरीन और इराक: कुछ खबरों में कहा गया कि ईरान ने बहरीन में अमेरिकी नौसेना के ठिकाने और इराक में सैन्य अड्डों पर भी हमले किए, लेकिन ये जानकारी पक्की नहीं है।

प्रतिक्रिया: कतर ने हमले की निंदा की और अपने हवाई क्षेत्र को कुछ समय के लिए बंद कर दिया।

ये हमले ईरान-इज़राइल युद्ध का हिस्सा हैं, जो 13 जून 2025 को इज़राइल के ईरान पर हमलों से शुरू हुआ था, किन्तु ईरान का अमेरिकी सेना के ठिकानो पर हमला करने से कहीं ईरान का हाल भी गाज़ा जैसा न हो जाए, अभी तो ईरान के कट्टरपंथी झंडे ले कर ईरान की सड़कों पर ख़ुशी का इजहार कर रहे हैं, कल क्या होगा इनको फिलिस्तीन से समझ नहीं आ रहा।   


अमेरिका अब क्या अटैक करेगा?


ईरान के हमलों के बाद, अब अमेरिका सख्त जवाब की तैयारी में है।

सैन्य कार्रवाई: राष्ट्रपति ट्रम्प ने चेतावनी दी कि अगर ईरान और हमले करता है, तो अमेरिका “ज़्यादा ताकत” से जवाब देगा। इसमें ईरान के सैन्य ठिकानों या तेल कारखानों पर हमले हो सकते हैं।

ज़्यादा रक्षा: अमेरिका कतर, बहरीन, और इराक में अपने ठिकानों पर और सैनिक, जहाज़, और पैट्रियट मिसाइल सिस्टम भेज सकता है।

ईरान के सहयोगियों पर हमला: अमेरिका ईरान समर्थित समूहों, जैसे लेबनान में हिज़बुल्लाह, पर हमला कर सकता है।

आर्थिक दबाव: अमेरिका ईरान के तेल निर्यात पर और सख्त पाबंदियाँ लगा सकता है।

बातचीत: अमेरिका कतर या यूरोप के ज़रिए शांति की कोशिश कर सकता है, लेकिन अभी बातचीत नाकाम रही है।

अमेरिका के राष्ट्रपति  डोनाल्ड ट्रैम्प बड़ा युद्ध नहीं चाहता, लेकिन अपने सैनिकों की सुरक्षा के लिए सख्त कदम उठा सकता है

क्यों है ये अहम? ईरान ने स्ट्रेट ऑफ़ होर्मुज़ बंद करने की धमकी दी है, जिससे दुनिया का 20% तेल रुक सकता है। इससे पेट्रोल की कीमतें बढ़ सकती हैं, और भारत जैसे देशों को नुकसान हो सकता है।

किन्तु ईरान पर हमला करने का अगला कारण  स्ट्रेट ऑफ़ होर्मुज पर अमेरिका का कब्ज़ा भी हो सकता है जिससे सभी पड़ोसी देशों का तेल निर्यात किया जाता है।  अब ये अमेरिका पर है वह अगला कदम क्या लेता है। 

हमारे साथ अपडेट रहें: इस युद्ध की हर खबर के लिए हमारे ब्लॉग को फॉलो करें। अपनी राय कमेंट करें—आपको क्या लगता है, अमेरिका अब क्या करेगा?


US Attacks Iran’s Nuclear Program Sites: Now Russia Openly Supports Iran



अमेरिका का ईरान पर हमला : ईरान के परमाणु प्रोग्राम साईट नष्ट- पेंटागन, रूस की ईरान को मदद  

NB7-Washington, June 22, 2025 – अमेरिका का इजरायल-ईरान युद्ध में कूदने से ईरान के तीन परमाणु केंद्रों – फोर्डो, नतांज और इस्फहान – पर अमेरिका नेहवाई हमले किए। अमेरिका ने 75 सटीक हथियारों का इस्तेमाल किया, जिनमें 14 "बंकर बस्टर" बम शामिल थे। 
अब सवाल है कि क्या रूस और चीन ईरान का समर्थन करेंगे, जिससे तनाव और बढ़ सकता है। 

अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया

अमेरिका ने "ऑपरेशन मिडनाइट हैमर" के तहत बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर विमानों से 14 विशाल जीबीयू-57 बम गिराए, जो 13,600 किलो वजनी हैं और जमीन के नीचे बने ठिकानों को नष्ट कर सकते हैं। ये बम फोर्डो जैसे गहरे बंकरों को तोड़ने के लिए बनाए गए हैं। इसके अलावा, 30 टॉमहॉक मिसाइलें पनडुब्बियों से दागी गईं, जो नतांज और इस्फहान के परमाणु केंद्रों पर गिरीं। 

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इसे “बड़ा सफल हमला” बताया और कहा कि इससे ईरान का परमाणु खतरा खत्म हो गया। रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने कहा कि यह हमला ईरान की सरकार बदलने के लिए नहीं, बल्कि उसके परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए था।

रूस और चीन का ईरान को समर्थन: अभी अनिश्चितता

रूस और चीन, जो ईरान के बड़े सहयोगी हैं, ने अमेरिका और इजरायल की कार्रवाई की निंदा की है, लेकिन अभी यह साफ नहीं है कि वे ईरान को खुल कर सैन्य मदद देंगे या नहीं । 

रूस पहले ही तीन साल से यूक्रेन के साथ युद्ध लड़ रहा है और उसने जनवरी 2025 में ईरान के साथ सैन्य समझौता किया था। ईरान रूस को यूक्रेन से लड़ने के लिए ड्रोन और मिसाइलें देता है, जबकि  रूस ईरान को खुफिया जानकारी देता है। 

लेकिन यूक्रेन युद्ध के कारण रूस की ताकत कम है, और विशेषज्ञों का मानना है कि वह अमेरिका से सीधा टकराव नहीं चाहेगा। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शांति की पेशकश की है, लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि रूस शायद ईरान को हथियार दे सकता है।

चीन, जो ईरान से बहुत सारा तेल खरीदता है, ने भी हमलों की निंदा की और शांति की बात की। चीन शायद ईरान को तकनीकी या आर्थिक मदद दे सकता है, लेकिन सीधे युद्ध में शामिल होने की संभावना कम है। हाल ही में तीन चीनी मालवाहक विमानों के ईरान में उतरने की खबर आई, लेकिन हथियारों की कोई पुष्टि नहीं हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि रूस और चीन अभी डर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन बड़ा युद्ध नहीं चाहते।

US के हमले के बाद, क्या तीसरा विश्व युद्ध शुरू होगा?

ईरान इजराइल के लोग डर रहे हैं कि अगर रूस और चीन ने ईरान को हथियार दिए, तो युद्ध और बड़ा हो सकता है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि तीसरा विश्व युद्ध अभी दूर है। रूस यूक्रेन में व्यस्त है, और चीन अपने आर्थिक हितों को बचाना चाहता है। 

अगर ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य बंद करता है, जहां से दुनिया का 20% तेल जाता है, तो तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे पूरी दुनिया प्रभावित होगी। संयुक्त राष्ट्र ने इसे “खतरनाक कदम” बताया है और चेतावनी दी है कि हमले से परमाणु सामग्री लीक हो सकती है, हालांकि अभी ऐसा कोई बड़ा खतरा नहीं दिखा।

होर्मुज जलडमरूमध्य क्या है?

What is the Starit of Hormuz Used for?

स्ट्रेट ऑफ़ होर्मुज : वैश्विक ऊर्जा का केंद्र और सामरिक महत्व

होर्मुज जलडमरूमध्य, जिसे विश्व की ऊर्जा आपूर्ति की मुख्य नस कहा जाता है, अमेरिका के ईरान पर हमले से फिर दुनियाभर में सुर्खियों में है। हाल ही में ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के कारण इस जलमार्ग को बंद करने की धमकी ने दुनिया भर के देशों की चिंता बढ़ा दी है। 

होर्मुज जलडमरूमध्य:



होर्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) पश्चिम एशिया में स्थित एक संकरा जलमार्ग है, जो फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है। यह जलडमरूमध्य ईरान के दक्षिणी तट और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) तथा ओमान के मुसंदम प्रायद्वीप के बीच फैला हुआ है। इसका भौगोलिक आकार डमरू जैसा है, और इसकी चौड़ाई सबसे संकरे स्थान पर मात्र 33 किलोमीटर है, जबकि इसकी लंबाई लगभग 167 किलोमीटर है।

इस जलमार्ग में कीश्म, होर्मुज, और हेंजम जैसे प्रमुख द्वीप स्थित हैं। यह जलडमरूमध्य न केवल दो बड़े जल निकायों को जोड़ता है, बल्कि वैश्विक व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति के लिए एक महत्वपूर्ण चोकपॉइंट भी है।

वैश्विक तेल व्यापार में महत्व

होर्मुज जलडमरूमध्य को विश्व का सबसे महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग माना जाता है, क्योंकि इसके माध्यम से विश्व के लगभग 20-25% कच्चे तेल और एक तिहाई तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) की ढुलाई होती है। सऊदी अरब, ईरान, कुवैत, इराक, और कतर जैसे तेल उत्पादक देश अपने अधिकांश तेल निर्यात के लिए इसी मार्ग पर निर्भर हैं। 2018 के आंकड़ों के अनुसार, प्रतिदिन लगभग 21 मिलियन बैरल तेल इस जलमार्ग से गुजरता है, जो वैश्विक पेट्रोलियम खपत का लगभग 21% है।

भारत, चीन, जापान, और दक्षिण कोरिया जैसे देश अपनी तेल आवश्यकताओं के लिए इस मार्ग पर निर्भर हैं। भारत अपनी तेल जरूरतों का 83% आयात करता है, और इसका अधिकांश हिस्सा होर्मुज जलडमरूमध्य के रास्ते आता है।

भू-राजनीतिक और सामरिक महत्व

होर्मुज जलडमरूमध्य का सामरिक महत्व इसके संकरे रास्ते और भौगोलिक स्थिति के कारण और भी बढ़ जाता है। इस जलमार्ग पर नियंत्रण रखने वाला देश या समूह वैश्विक व्यापार और सैन्य गतिविधियों पर नजर रख सकता है। इतिहास में, जलडमरूमध्य हमेशा से अंतरराष्ट्रीय खींचतान का केंद्र रहे हैं। उदाहरण के लिए, 1980 के दशक में ईरान-इराक युद्ध के दौरान "टैंकर युद्ध" में दोनों देशों ने एक-दूसरे के तेल टैंकरों को निशाना बनाया था।

हाल की घटनाएँ और तनाव: होर्मुज जलडमरूमध्य क्षेत्र में हाल के वर्षों में कई घटनाएँ सुर्खियों में रही हैं। 2019 में, फुजैराह (UAE) के पास चार वाणिज्यिक जहाजों पर तोड़फोड़ की घटना और 13 जून 2019 को दो तेल टैंकरों पर हुए हमलों ने वैश्विक चिंता बढ़ाई थी। इन घटनाओं के बाद अमेरिका और ईरान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था।

2025 में, इजरायल-ईरान संघर्ष के चलते यह जलमार्ग फिर से चर्चा में है। ईरान ने 2015 के परमाणु समझौते से संबंधित अपने दायित्वों को वापस लेने और इस जलमार्ग को बंद करने की धमकी दी है। अमेरिका का पांचवां नौसैनिक बेड़ा, जो बहरीन में तैनात है, इस क्षेत्र की निगरानी करता है, और किसी भी अवरोध की स्थिति में हस्तक्षेप कर सकता है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:  होर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने का असर न केवल तेल उत्पादक देशों पर, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ सकता है। अगर यह मार्ग बंद किया जाता है, तो:

तेल की कीमतें: कच्चे तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं, जिसका असर पेट्रोल, डीजल, और अन्य ईंधन की कीमतों पर पड़ेगा।

आपूर्ति श्रृंखला: दुनियाभर की कच्चे तेल की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित करेगा,  जिससे आयात-निर्यात पर बुरा असर पड़ेगा।

आर्थिक अस्थिरता: भारत जैसे देश, जो तेल आयात पर निर्भर हैं, को आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

वैकल्पिक मार्गों की खोज : होर्मुज जलडमरूमध्य के महत्व को देखते हुए, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश इस मार्ग को बाइपास करने के लिए पाइपलाइनों और अन्य वैकल्पिक मार्गों की तलाश कर रहे हैं। हालांकि, इन वैकल्पिक मार्गों का निर्माण महंगा और समय लेने वाला है, और वर्तमान में कोई भी मार्ग होर्मुज की जगह नहीं ले सकता।

बंकर बस्टर बम क्या हैं?


जीबीयू-57 बम, जिसे बंकर बस्टर कहते हैं, 13,600 किलो का है और 200 फीट गहरे कंक्रीट या मिट्टी को तोड़ सकता है। यह बम बी-2 विमानों से गिराया जाता है और जीपीएस से सटीक निशाना लगाता है। केवल अमेरिका के पास यह बम है, और पहली बार इसका युद्ध में इस्तेमाल हुआ।


Iran Israel War Updates: will oil Prices shoot ?  

ईरान इजराइल जंग: लम्बी चली तो ?

क्या तेल की कीमतें छुएगीं आसमान ? 



भारतीय बाज़ारों पर क्या होगा असर:- क्या हैं मायने 


ईरान और इज़रायल के बीच हालिया तनाव ने वैश्विक ऊर्जा बाजारों में हलचल मचा दी है। 
ईरान, जिसके पास मध्य पूर्व के 24% और विश्व के 12% सिद्ध तेल भंडार (लगभग 157 अरब बैरल) हैं, एक प्रमुख तेल उत्पादक देश है। 

यदि यह युद्ध बढ़ता है, तो इसका भारत और विश्व पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। इस युद्ध के भारत और वैश्विक अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से तेल की कीमतों, व्यापार, और मुद्रास्फीति पर पड़ने वाले प्रभाव पर एक नजर डालें।  

यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है की भारत सीधे ईरान से कच्चा तेल नहीं लेता किन्तु ईरान विश्व बाजार में तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल निर्यातक है और ईरान की कच्चे तेल की कमी से विश्व में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में आग लगने की पूरी सम्भावना है .  

ईरान इजराइल जंग: भारत पर संभावित प्रभाव 

1. चाबहार पोर्ट परियोजना

चाबहार पोर्ट भारत के लिए एक रणनीतिक परियोजना है, जो अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करता है, बिना पाकिस्तान पर निर्भर हुए। भारत ने इस पोर्ट के विकास के लिए अरबों रुपये का निवेश किया है। 2016 में भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय समझौता हुआ था, जिसके तहत चाबहार को क्षेत्रीय व्यापार का केंद्र बनाया जाना था।

ईरान इजराइल युद्ध का प्रभाव:

प्रोजेक्ट में देरी: ईरान-इज़रायल युद्ध के कारण चाबहार पोर्ट के विकास में और देरी हो सकती है। अमेरिकी प्रतिबंधों ने पहले ही इस परियोजना को धीमा किया था, और अब युद्ध के कारण बुनियादी ढांचे को नुकसान और सुरक्षा जोखिम बढ़ गए हैं।

अमेरिकी प्रतिबंधों का खतरा: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में चाबहार पोर्ट परियोजना के लिए दी गई छूट को रद्द कर दिया है, जिससे भारत का निवेश खतरे में पड़ सकता है।

मध्य एशिया तक पहुंच में रुकावट: यदि ईरान कमजोर होता है या युद्ध के कारण इसकी बुनियादी सुविधाएं नष्ट होती हैं, तो भारत की मध्य एशिया तक व्यापारिक पहुंच कमजोर हो सकती है, जो भारत की भू-रणनीतिक स्थिति को प्रभावित करेगा।


2. भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEC)

IMEEC एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसे 2023 के G-20 शिखर सम्मेलन में मंजूरी मिली थी। यह भारत को मध्य पूर्व और यूरोप से जोड़ने वाला व्यापारिक गलियारा है, जो चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) का जवाब है।

3. अन्य व्यापारिक और रक्षा सहयोग

भारत और ईरान के बीच व्यापारिक संबंध, जैसे चावल, रसायन, और फल-सब्जियों का निर्यात, भी प्रभावित हो सकते हैं। 2024-25 में भारत ने ईरान को 1.2 अरब डॉलर का निर्यात और 441 मिलियन डॉलर का आयात किया था। युद्ध के कारण यह व्यापार कम हो सकता है।




4. ईरान इजराइल युद्ध और तेल की कीमतों में उछाल

भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरत का 85% से अधिक आयात करता है, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व से आता है। यदि ईरान और इज़रायल के बीच युद्ध के कारण स्ट्रेट ऑफ होर्मुज (जहां से विश्व का 20% तेल आपूर्ति होती है) में व्यवधान होता है, तो तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं। हाल ही में, ब्रेंट क्रूड की कीमतें 7% बढ़कर $74 प्रति बैरल से ऊपर पहुंच गईं, और अगर यह युद्ध और बढ़ता है, तो कीमतें $100 प्रति बैरल तक जा सकती हैं।
  • भारत के लिए क्या हैं मतलब?


    पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ेंगी: भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें पहले से ही 132-138 रुपये प्रति लीटर हैं। तेल की कीमतों में $10 प्रति बैरल की वृद्धि से पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 5 रुपये प्रति लीटर तक का इजाफा हो सकता है।

    महंगाई बढ़ेगी:
     तेल की कीमतों में वृद्धि से ट्रांसपोर्ट, खेती, और मैन्युफैक्चरिंग की लागत बढ़ेगी, जिससे खाने-पीने की चीजों से लेकर रोजमर्रा की वस्तुओं तक की कीमतें बढ़ेंगी।

    रुपये पर दबाव: तेल आयात के लिए ज्यादा खर्च से भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ेगा, जिससे आयात और महंगा हो सकता है।

5. व्यापार और अर्थव्यवस्था पर असर

भारत ने 2020 से ईरान से तेल आयात बंद कर दिया है, लेकिन स्ट्रेट ऑफ होर्मुज के माध्यम से अन्य देशों (जैसे सऊदी अरब, कुवैत, और यूएई) से तेल आयात करता है। यदि यह मार्ग बंद होता है, तो भारत के तेल आयात में रुकावट आ सकती है, जिससे आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होगी।

चालू खाता घाटा बढ़ेगा: तेल की कीमतों में $10 की वृद्धि से भारत का चालू खाता घाटा जीडीपी के 0.55% तक बढ़ सकता है।

रिजर्व बैंक की नीतियां प्रभावित होंगी: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने हाल ही में रेपो रेट में 100 बेसिस पॉइंट की कटौती की थी, लेकिन बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण दरों में कटौती रुक सकती है।

6. शेयर बाजार में आ सकता है उतार-चढ़ाव

ईरान-इज़रायल युद्ध की खबरों से शेयर बाजार में अस्थिरता बढ़ी है। भारत का सेंसेक्स 1300 अंक तक गिर गया था।

नुकसान: एयरलाइंस, पेंट, टायर, और सीमेंट जैसे क्षेत्र, जो पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भर हैं, प्रभावित होंगे।

फायदा: तेल रिफाइनरी और रक्षा कंपनियों के शेयरों में उछाल देखने को मिल सकता है।

7. भारतीय नागरिकों पर प्रभाव

मध्य पूर्व में भारत के लाखों प्रवासी काम करते हैं। युद्ध बढ़ने से उनकी सुरक्षा और नौकरियों पर खतरा मंडरा सकता है। इसके अलावा, हवाई यात्रा में रुकावट और लंबे मार्गों के कारण टिकटों की कीमतें बढ़ सकती हैं।

विश्व पर प्रभाव

1. वैश्विक तेल आपूर्ति पर खतरा

ईरान विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है, जो प्रतिदिन 3.4 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन करता है। इसके तेल निर्यात का 90% चीन को जाता है। इज़रायल ने हाल ही में ईरान के तेल और गैस सुविधाओं, जैसे साउथ पार्स गैस फील्ड और तेहरान रिफाइनरी, पर हमले किए हैं, जिससे तेल और गैस आपूर्ति में रुकावट का खतरा बढ़ गया है।

स्ट्रेट ऑफ होर्मुज का महत्व:
 यह विश्व का सबसे महत्वपूर्ण तेल व्यापार मार्ग है, जहां से 20% तेल और 20% तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) की आपूर्ति होती है। यदि ईरान इस मार्ग को बंद करता है, तो तेल की कीमतें $100 से $120 प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं।

वैश्विक मुद्रास्फीति: तेल की कीमतों में वृद्धि से वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति बढ़ेगी, जिससे केंद्रीय बैंकों को ब्याज दरों में कटौती करने में मुश्किल होगी।

2. अन्य देशों पर प्रभाव

चीन: ईरान का सबसे बड़ा तेल खरीदार है, लेकिन उसके पास रूस, सऊदी अरब, और अन्य देशों से तेल आयात करने की क्षमता है। फिर भी, स्ट्रेट ऑफ होर्मुज में रुकावट से शिपिंग और बीमा लागत बढ़ेगी।

यूरोप: यूरोप मध्य पूर्व से बड़ी मात्रा में तेल और गैस आयात करता है। युद्ध के कारण गैस की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे सर्दियों में हीटिंग बिल बढ़ेंगे।

अमेरिका: अमेरिका अब तेल निर्यातक है और मध्य पूर्व पर उसकी निर्भरता कम है। हालांकि, तेल की कीमतों में उछाल से अमेरिकी उपभोक्ताओं पर असर पड़ेगा।

3. वैश्विक अर्थव्यवस्था पर जोखिम

यदि युद्ध क्षेत्रीय स्तर पर फैलता है और सऊदी अरब या कतर जैसे अन्य तेल उत्पादक देश प्रभावित होते हैं, तो वैश्विक मंदी का खतरा बढ़ सकता है। तेल की कीमतों में तेज वृद्धि से खाद्य और विनिर्माण लागत बढ़ेगी, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होगी।