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CEPEC afganistan and Chabahar project of india

CPEC and its Impact on India 

CPEC क्या है और भारत क्यों है चिंतित ?



चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक प्रमुख हिस्सा है। इसका पूर्ण स्वरूप China-Pakistan Economic Corridor (CEPEC) है।

2013 में शुरू हुई इस परियोजना को 2015 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने 51 समझौतों के साथ औपचारिक रूप दिया।

CPEC का मूल उद्देश्य पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ना है, जिससे चीन को अरब सागर के माध्यम से यूरोप, मध्य एशिया, और अफ्रीका तक माल पहुँचाने का एक वैकल्पिक और सुरक्षित मार्ग मिल सके। यह परियोजना चीन को मलक्का जलडमरूमध्य पर निर्भरता कम करने में मदद करती है।

CPEC में 62 बिलियन डॉलर का निवेश शामिल है, जिसमें सड़कें, रेलवे, बिजली संयंत्र, और विशेष आर्थिक क्षेत्र शामिल हैं। यह परियोजना पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में ग्वादर पोर्ट को केंद्र में रखती है, जिसे “पाकिस्तान का दुबई” कहा जाता था, लेकिन हाल के वर्षों में यह आतंकवादी हमलों और स्थानीय असंतोष के कारण आलोचना का शिकार हुआ है।

CPEC का अफगानिस्तान में विस्तार

मई 2025 में बीजिंग में चीन (वांग यी), पाकिस्तान (इशाक दार), और अफगानिस्तान (अमीर खान मुत्तकी) के विदेश मंत्रियों की त्रिपक्षीय बैठक में CPEC को अफगानिस्तान तक विस्तार देने का निर्णय लिया गया। इस विस्तार में पेशावर-काबुल मोटरमार्ग और अफगानिस्तान के खनिज संसाधनों तक पहुँच शामिल है। अफगानिस्तान में 1.4 मिलियन टन दुर्लभ खनिज, जैसे लिथियम, कॉपर, और कोबाल्ट, चीन की इलेक्ट्रॉनिक्स, बैटरी, और सैन्य उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण हैं।

चीन ने तालिबान को आर्थिक सहायता, बुनियादी ढाँचे, और निवेश का वादा किया है। बदले में, तालिबान ने चीन के उइघुर मुस्लिम मुद्दे पर चुप्पी साधने और वखान कॉरिडोर के माध्यम से शिनजियांग को सुरक्षित रखने का आश्वासन दिया है। 

यह गठजोड़ पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को लेकर तनाव को कम करने का भी प्रयास है। चीन ने इस त्रिपक्षीय सहयोग को मजबूत करने के लिए मध्यस्थता की भूमिका निभाई है।

भारत के लिए CPEC से उत्पन्न तनाव

भारत ने CPEC का शुरू से ही विरोध किया है, क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, जिसे भारत अपनी संप्रभुता का हिस्सा मानता है। CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार भारत के लिए कई चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है:-

सुरक्षा खतरे: CPEC के तहत पाकिस्तान और चीन का सहयोग अफगानिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे सकता है। 

X पर कुछ पोस्ट्स में दावा किया गया है कि पाकिस्तान की ISI और चीन के समर्थन से अफगानिस्तान आतंकवादी समूहों के लिए प्रशिक्षण स्थल बन सकता है, जो जम्मू-कश्मीर में भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है। CNN-News18 ने खुफिया एजेंसियों के हवाले से चेतावनी दी है कि CPEC का विस्तार भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है।

चाबहार पोर्ट पर प्रभाव: भारत ने ईरान के चाबहार पोर्ट में 120 मिलियन डॉलर का निवेश किया है और 2024 में 10 साल के लिए इसका प्रबंधन हासिल किया। चाबहार अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की पहुँच का प्रमुख मार्ग है, जो अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) का हिस्सा है। CPEC का ग्वादर पोर्ट (जो चाबहार से केवल 72 किमी दूर है) चाबहार की रणनीतिक उपयोगिता को कमजोर कर सकता है।

क्षेत्रीय प्रभाव में कमी: भारत ने अफगानिस्तान में 3 बिलियन डॉलर से अधिक की विकास परियोजनाएँ शुरू की हैं, जैसे सलमा बांध, संसद भवन, और स्कूल निर्माण  CPEC का विस्तार चीन और पाकिस्तान के प्रभाव को बढ़ाकर भारत की क्षेत्रीय स्थिति को कमजोर कर सकता है।

आर्थिक चुनौतियाँ: CPEC का विस्तार पाकिस्तान और अफगानिस्तान को चीन पर आर्थिक रूप से निर्भर बनाता है, जिससे भारत के व्यापार और निवेश के अवसर सीमित हो सकते हैं। ग्वादर पोर्ट के माध्यम से चीन मध्य एशिया तक सस्ता और तेज व्यापार मार्ग स्थापित कर सकता है।

कूटनीतिक दबाव: CPEC का विस्तार भारत की ऑपरेशन सिंदूर जैसी सैन्य कार्रवाइयों के बाद चीन और पाकिस्तान की ओर से जवाबी रणनीति माना जा रहा है। X पर कुछ पोस्ट्स में इसे भारत की बढ़ती क्षेत्रीय मुखरता के खिलाफ गठजोड़ के रूप में देखा गया है।

CPEC की चुनौतियाँ और कमजोरियाँ

CPEC को कई आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है:

सुरक्षा मुद्दे: बलूचिस्तान में बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने CPEC परियोजनाओं पर हमले किए हैं। 2024 और 2025 में ग्वादर और दासू जलविद्युत परियोजना पर हमलों में कई चीनी इंजीनियर मारे गए। चीन ने पाकिस्तान पर सुरक्षा बढ़ाने का दबाव डाला और 60 चीनी सुरक्षा कर्मियों को CPEC परियोजनाओं की सुरक्षा के लिए तैनात किया।

आर्थिक दबाव: पाकिस्तान का बढ़ता विदेशी कर्ज और आर्थिक संकट CPEC की प्रगति को प्रभावित कर रहा है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि CPEC ने पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार को और कमजोर किया है।


स्थानीय असंतोष: ग्वादर में स्थानीय बलूच समुदाय CPEC को संसाधनों के शोषण के रूप में देखता है। ग्वादर पोर्ट को “व्हाइट एलिफेंट” कहा जा रहा है, क्योंकि यह पिछले पाँच वर्षों में व्यावसायिक रूप से विफल रहा है।

भारत और अफगानिस्तान: रणनीतिक साझेदारी

भारत ने अफगानिस्तान के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध बनाए रखे हैं। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद, भारत ने सतर्कता के साथ कूटनीतिक संपर्क बढ़ाए। जनवरी 2025 में, विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने तालिबान के रक्षा मंत्री मुल्ला याकूब मुत्तकी से दुबई में मुलाकात की, जिसमें चाबहार पोर्ट के माध्यम से व्यापार और मानवीय सहायता पर चर्चा हुई।

भारत ने अफगानिस्तान को 50,000 टन गेहूं, दवाइयाँ, और चिकित्सा उपकरण प्रदान किए हैं।

चाबहार पोर्ट के माध्यम से भारत ने अफगानिस्तान के व्यापारियों को निर्यात-आयात के लिए सुविधाएँ दी हैं।

अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हमिद करजई ने भारत के सहयोग की सराहना की और शिक्षा, प्रशिक्षण, और व्यापार पर ध्यान देने का आग्रह किया।

भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया

CPEC के विस्तार और पाकिस्तान-चीन-अफगानिस्तान गठजोड़ के जवाब में भारत को निम्नलिखित रणनीतियाँ अपनानी चाहिए:-

चाबहार पोर्ट का विकास: भारत ने चाबहार में 120 मिलियन डॉलर का निवेश किया है और आधुनिक क्रेन खरीदने की योजना बनाई है। 2025 में, चाबहार की क्षमता को 100,000 TEUs से 500,000 TEUs तक बढ़ाने का लक्ष्य है।


कूटनीतिक गठबंधन: ईरान, रूस, और मध्य एशियाई देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर भारत CPEC के प्रभाव को संतुलित कर सकता है। INSTC को तेजी से लागू करना महत्वपूर्ण है।


सुरक्षा सतर्कता: अफगानिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों पर नजर रखने और तालिबान के साथ खुफिया सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है।


आर्थिक निवेश: अफगानिस्तान में शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढाँचे में निवेश बढ़ाकर भारत अपनी स्थिति को मजबूत कर सकता है।