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What is Indus Water Treaty

Indus Water Treaty Explained: 
Will Pakistan Face a Water and Food Shortage?

सिंधु जल संधि: क्या पाकिस्तान को पानी और खाद्यान्न की कमी का सामना करना पड़ेगा?

19 सितंबर, 1960 को कराची में हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐतिहासिक जल-बंटवारा समझौता था, जिसकी मध्यस्थता विश्व बैंक द्वारा की गई थी। 
यह सिंधु नदी प्रणाली के जल आवंटन और उपयोग को नियंत्रित करता है, जो दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण जल संसाधन है, जो तिब्बत (China) से निकलती है और भारत और पाकिस्तान से होकर बहती है।




यह सिंधु जल संधि विश्व स्तर पर सबसे सफल सीमा पार जल-बंटवारे समझौतों में से एक है, जो दशकों के संघर्ष से बची हुई है, जिसमें चार भारत-पाकिस्तान युद्ध और मुख्य रूप से पाकिस्तान द्वारा बनाए गए भू-राजनीतिक तनाव शामिल हैं।

सिंधु जल संधि का अर्थ :

What is Indus Water Treaty 1960?

सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) एक जल-वितरण समझौता है जिसे सिंधु नदी प्रणाली के जल का प्रबंधन करने के लिए बनाया गया है, जिसमें छह प्रमुख नदियाँ शामिल हैं: सिंधु, झेलम, चिनाब (पश्चिमी नदियाँ) और रावी, ब्यास, सतलुज (पूर्वी नदियाँ)।

Indus Water Treaty Main Points

सिंधु जल संधि के मुख्य बिंदु:

Division of Rivers:

नदियों के जल का आधा आधा बटवारा :

पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास, सतलुज): भारत को अप्रतिबंधित उपयोग के लिए आवंटित, कुल जल प्रवाह में केवल लगभग 20% (41 बिलियन क्यूबिक मीटर) का योगदान। यानि लगभग 20 प्रतिशत पानी भारत को नदियों में छोड़ना पडेगा।  

पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम, चिनाब): प्राथमिक उपयोग के लिए पाकिस्तान को आवंटित, कुल जल प्रवाह का 80% (99 बिलियन क्यूबिक मीटर) योगदान देती हैं। भारत को सीमित गैर-उपभोग्य उपयोगों की अनुमति है, जैसे कि सिंचाई, घरेलू उपयोग और रन-ऑफ-द-रिवर पनबिजली परियोजनाएँ, सख्त डिज़ाइन और परिचालन प्रतिबंधों के अधीन।

भारत की मुख्य आपत्तियाँ क्या हैं?

आतंकवाद का मुद्दा: भारत का मानना है कि पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद, जैसे अप्रैल 2025 में पहलगाम हमला, संधि के सहयोगात्मक ढांचे को कमजोर करता है। भारत ने संधि को निलंबित करने का फैसला तब तक लिया है, जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाता।

परियोजनाओं पर विवाद: पाकिस्तान ने भारत की जलविद्युत परियोजनाओं, जैसे किशनगंगा और रातले, पर आपत्ति जताई है, दावा करते हुए कि ये संधि का उल्लंघन करती हैं। भारत का कहना है कि ये परियोजनाएं संधि के अनुरूप हैं और पाकिस्तान अनावश्यक बाधाएं डाल रहा है।

पानी के उपयोग पर असंतुलन: भारत का मानना है कि संधि उसे पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) के पूर्ण उपयोग की अनुमति देती है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में पानी के सीमित उपयोग के कारण वह अपने हिस्से का पूरा लाभ नहीं उठा पा रहा। सिंधु जल संधि की सभी नदियां एक बराबर नहीं हैं 

पाकिस्तान के हिस्से में आने वाली नदियां बड़ी हैं और उनमें पानी की मात्रा भी ज्यादा है जबकि भारत के हिस्से में जो नदिया आयी हैं उनमें पानी की मात्रा कम है और भारत का क्षेत्रफल भी पाकिस्तान से बहुत ज्यादा है, किन्तु भारत के हिस्से में छः नदियों के कुल जल का केवल लगभग तीस प्रतिशत ही आ पाता है  

संधि की प्रासंगिकता: भारत का तर्क है कि 1960 की संधि आज की भू-राजनीतिक और पर्यावरणीय चुनौतियों, जैसे जलवायु परिवर्तन और बढ़ती जल मांग, के लिए अपर्याप्त है। भारत संधि में संशोधन या पुनर्विचार चाहता है।

पाकिस्तान की शिकायतें: भारत का कहना है कि पाकिस्तान बार-बार विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर छोटे-मोटे विवादों को उठाकर संधि के कार्यान्वयन में रुकावट डालता है, जिससे सहयोग प्रभावित होता है।

Sindhu Water Treaty 1960 and India Concern

भारत की मुख्य परेशानी क्या है ?

Indus Water Treaty 1960- इसके तहत सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों—सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज—के पानी का बंटवारा किया गया। संधि के अनुसार: यदि छः नदियों के कुल पानी को जोड़ा जाय तो भारत के हिस्से में पूर्वी तीन ही नदिया आती हैं जिनमें जल प्रवाह कम है इसलिए भारत के हिस्से में कुल पानी का सिर्फ 20 से 30 % जल ही आ पाता है जबकि भारत के पास नदियों द्वारा सींचा जाने वाला क्षेत्रफल पकिस्तान से कई गुना बड़ा है  

  • भारत को पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) का पूर्ण नियंत्रण मिला, जो कुल जल प्रवाह का लगभग 20-30% है।
  • पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का अधिकार मिला, जो कुल जल प्रवाह का लगभग 70-80% है।

विशेष रूप से पाकिस्तान के लिए, यह Indus water Treaty सिंधु जल संधि दक्षिण एशिया में जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण रही है, जहां सिंधु नदी प्रणाली उसकी कृषि और अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। विकिपीडिया पर और पढ़ें.

पाकिस्तान में जल और खाद्य संकट का खतरा

हाल ही में, अप्रैल 2025 में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने इस संधि को "निलंबित" करने की घोषणा की। यह कदम पाकिस्तान के लिए गंभीर परिणाम ला सकता है, क्योंकि:

कृषि पर निर्भरता: पाकिस्तान की 90% कृषि सिंधु नदी बेसिन पर निर्भर है, जो देश के 21% जीडीपी और 45% रोजगार में योगदान देती है।

जल आपूर्ति: संधि के तहत पाकिस्तान को प्रतिवर्ष 135 मिलियन एकड़ फीट (MAF) पानी मिलता है, जो उसकी कुल जल आपूर्ति का 80% है।

खाद्य सुरक्षा: पानी की कमी से फसल उत्पादन, विशेष रूप से गेहूं और चावल जैसे प्रमुख खाद्यान्नों पर असर पड़ सकता है, जिससे खाद्य संकट और महंगाई बढ़ सकती है।

पाकिस्तान ने भारत के इस कदम को "युद्ध की कार्रवाई" के रूप में देखा है और इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की धमकी दी है। अल जज़ीरा.

भारत के पड़ोसी देशों से संबंधों पर प्रभाव

इस संधि के निलंबन का असर न केवल भारत-पाकिस्तान संबंधों पर, बल्कि दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय गतिशीलता पर भी पड़ेगा:

भारत-पाकिस्तान तनाव: यह कदम दोनों देशों के बीच पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों को और खराब कर सकता है। भारत ने संधि को तब तक निलंबित रखने का इरादा जताया है, जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को प्रायोजित करना बंद नहीं करता। टाइम्स ऑफ इंडिया.

अंतरराष्ट्रीय दबाव:
विश्व बैंक और अन्य वैश्विक संस्थाएं इस विवाद में हस्तक्षेप कर सकती हैं, क्योंकि संधि एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है।

अन्य पड़ोसी देश: बांग्लादेश और नेपाल जैसे देश, जो भारत के साथ जल-साझेदारी समझौतों पर निर्भर हैं, इस घटनाक्रम को ध्यान से देख रहे हैं। इससे भारत की क्षेत्रीय विश्वसनीयता पर सवाल उठ सकते हैं।

चीन का रुख: चीन, जो पाकिस्तान का करीबी सहयोगी है और सिंधु नदी के ऊपरी हिस्सों को नियंत्रित करता है, इस स्थिति का लाभ उठा सकता है, जिससे भारत के लिए भू-राजनीतिक चुनौतियां बढ़ सकती हैं।

इस स्थिति से निपटने के लिए दोनों देशों को कूटनीतिक बातचीत पर ध्यान देना होगा।


विश्व बैंक की मध्यस्थता में संधि पर पुनर्विचार।

आतंकवाद और जल प्रबंधन जैसे मुद्दों पर संयुक्त कार्य समूह का गठन।

क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए दक्षिण एशियाई देशों के बीच जलवायु और जल संसाधन पर एक व्यापक नीति।

इंडस वॉटर ट्रीटी का निलंबन दक्षिण एशिया में एक नया संकट पैदा कर सकता है, विशेष रूप से पाकिस्तान के लिए, जहां जल और खाद्य सुरक्षा खतरे में है। यह भारत और उसके पड़ोसी देशों, विशेष रूप से पाकिस्तान, के बीच संबंधों को और जटिल बना सकता है। कूटनीति और सहयोग ही इस स्थिति से निपटने का रास्ता है।