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Pakistan China Afganistan Alliance & India Challenges

पाकिस्तान-चीन-अफगानिस्तान गठजोड़: भारत के लिए चुनौतियां

Pakistan-China-Afghanistan Alliance: Emerging Threats for India


अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं। चीन और पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए रणनीतिक कदम उठाए हैं, 

विशेष रूप से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) को अफगानिस्तान तक विस्तार देने की योजना के साथ। यह गठजोड़ भारत के लिए कई तरह की चुनौतियां प्रस्तुत करता है, क्योंकि chin ki tarah भारत ने भी अफगानिस्तान में विकास परियोजनाओं में भारी निवेश किया है। 

इसलिए पाकिस्तान चीन और अफगानिस्तान का ये नया गठजोड़ भारत की विदेश निति के साथ साथ आतंकवाद के मुद्दे पर भी गंभीर समस्या पैदा कर सकता है।  

चीन का अफगानिस्तान में लगातार बढ़ता प्रभाव

China’s Game with Taliban: New Challenges for India’s Security 

2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद, चीन ने अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति को तेजी से बढ़ाया है। चीन ने न केवल काबुल में अपने दूतावास को बनाए रखा, बल्कि तालिबान के साथ राजनयिक और आर्थिक संबंधों को भी मजबूत किया। चीन ने CPEC के विस्तार को अफगानिस्तान तक ले जाने की योजना बनाई है, जिसमें लगभग 65 अरब डॉलर का निवेश शामिल है। यह परियोजना पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को अफगानिस्तान और मध्य एशिया से जोड़ेगी, जिससे चीन को यूरोप तक अपने उत्पादों को तेजी से पहुंचाने का अवसर मिलेगा।

चीन ने तालिबान को आर्थिक और कूटनीतिक समर्थन का वादा किया है, जिसके बदले तालिबान ने चीन को आश्वासन दिया है कि अफगान क्षेत्र का उपयोग चीन के खिलाफ किसी भी गतिविधि के लिए नहीं होगा, विशेष रूप से उइघुर मुस्लिमों से संबंधित। वखान कॉरिडोर, जो अफगानिस्तान को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ता है, चीन की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

पाकिस्तान की भूमिका और तालिबान के साथ तनाव

पाकिस्तान ने लंबे समय तक तालिबान को समर्थन दिया, लेकिन हाल के वर्षों में पाकिस्तान और अफगान तालिबान के बीच तनाव बढ़ा है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) जैसे आतंकवादी समूहों को लेकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच मतभेद उभरे हैं। पाकिस्तान का आरोप है कि TTP को अफगानिस्तान से समर्थन मिल रहा है, जबकि तालिबान ने पाकिस्तान की सीमा पार सैन्य कार्रवाइयों को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन माना है।

इसके बावजूद, चीन ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव को कम करने के लिए मध्यस्थता की भूमिका निभाई है। मई 2025 में बीजिंग में चीन, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों की त्रिपक्षीय बैठक इसका प्रमाण है। इस बैठक में CPEC के विस्तार पर सहमति बनी, जो पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच विश्वास को बढ़ाने का प्रयास था।

भारत और अफगानिस्तान: एक मजबूत रिश्ता

भारत ने अफगानिस्तान के साथ ऐतिहासिक और मजबूत संबंध बनाए रखे हैं। अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद, भारत ने शुरू में काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया था, लेकिन बाद में सतर्कता के साथ तालिबान के साथ संपर्क बढ़ाया। भारत ने अफगानिस्तान को गेहूं, दवाइयां, और अन्य मानवीय सहायता प्रदान की है। चाबहार पोर्ट के माध्यम से भारत ने अफगानिस्तान के साथ व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने की कोशिश की है, जिसे हाल ही में 10 साल के लिए भारत को प्रबंधन के लिए सौंपा गया है।

तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने भारत के साथ संबंधों को सामान्य करने और भारतीय निवेश को आकर्षित करने की इच्छा जताई है। हाल के महीनों में, भारतीय अधिकारियों, जैसे जेपी सिंह और आनंद प्रकाश, ने तालिबान के नेताओं के साथ मुलाकात की है, जिसमें व्यापार, निवेश, और चाबहार पोर्ट के उपयोग पर चर्चा हुई।

पाकिस्तान-चीन-अफगानिस्तान गठजोड़: भारत के लिए नए खतरे

Pak-China-Taliban Axis: Is India Facing a New Geopolitical Storm ?

पाकिस्तान, चीन, और अफगानिस्तान का गठजोड़ भारत के लिए कई तरह की चुनौतियां प्रस्तुत करता है:

  1. CPEC का विस्तार और भारत का निवेश: CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार भारत के चाबहार पोर्ट परियोजना को कमजोर कर सकता है। चीन का भारी निवेश और पाकिस्तान का खुफिया समर्थन अफगानिस्तान में कट्टरपंथ को बढ़ावा दे सकता है, जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है।

  2. क्षेत्रीय प्रभाव में कमी: चीन और पाकिस्तान की रणनीति अफगानिस्तान में भारत के प्रभाव को सीमित करने की है। X पर कुछ पोस्ट्स में दावा किया गया है कि चीन और पाकिस्तान ने तालिबान से भारत की उपस्थिति को केवल राजनयिक मिशनों तक सीमित करने का अनुरोध किया है।

  3. आतंकवाद का खतरा: पाकिस्तान की ISI और चीन के समर्थन से अफगानिस्तान आतंकवादी समूहों के लिए प्रशिक्षण का मैदान बन सकता है। यह भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दे सकता है, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर में।

  4. कूटनीतिक दबाव: चीन और पाकिस्तान की त्रिपक्षीय वार्ताएं भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने का प्रयास हो सकती हैं, विशेष रूप से ऑपरेशन सिंदूर जैसे सैन्य अभियानों के बाद।

भारत की रणनीति और सतर्कता

भारत को इस गठजोड़ के जवाब में सतर्क और रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है:

  1. अफगानिस्तान के साथ संबंधों को मजबूत करना: भारत को अफगानिस्तान में अपनी मानवीय और विकास परियोजनाओं को जारी रखना चाहिए। चाबहार पोर्ट के माध्यम से व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना भारत के लिए महत्वपूर्ण है।

  2. क्षेत्रीय सहयोग: भारत को ईरान, रूस, और मध्य एशियाई देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर चीन और पाकिस्तान के प्रभाव को संतुलित करना चाहिए।

  3. आतंकवाद के खिलाफ रणनीति: भारत को अफगानिस्तान में आतंकवादी समूहों की गतिविधियों पर नजर रखने और तालिबान के साथ खुफिया सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है।

  4. कूटनीतिक सतर्कता: भारत को चीन और पाकिस्तान की त्रिपक्षीय वार्ताओं पर नजर रखनी चाहिए और किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को अस्वीकार करना चाहिए।

CPEC to Chabahar: The Shadow of Pak-China-Afghan Nexus on India

पाकिस्तान-चीन-अफगानिस्तान गठजोड़ भारत के लिए एक जटिल और गंभीर चुनौती है। 

चीन का अफगानिस्तान में बढ़ता निवेश और CPEC का विस्तार भारत की क्षेत्रीय प्रभाव और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है। हालांकि, तालिबान भारत के साथ संबंधों को सामान्य करने की इच्छा जता रहा है, लेकिन वह चीन और पाकिस्तान के साथ भी संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। भारत को सतर्क रहते हुए अपनी कूटनीतिक और आर्थिक रणनीतियों को मजबूत करना होगा ताकि वह क्षेत्र में अपनी स्थिति को बनाए रख सके।

आज के राजनैतिक और इकनोमिक डेवलपमेंट के परिदृश्य में कोई भी देश किसी का भी स्थाई मित्र नहीं है, भारत ने भी रूस और यूक्रेन युद्ध में तटस्थ रह कर अपनी जरूरतों को ज्यादा महत्त्व दिया था बजाय रूस के साथ खुल कर खड़े होने के।  

आज के भू-राजनीतिक परिदृश्य में दो देशों के बीच संबंध लाभ-हानि और रणनीतिक हितों पर आधारित हैं। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) का अफगानिस्तान तक विस्तार इसका नवीनतम उदाहरण है। मई 2025 में बीजिंग में चीन, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों की त्रिपक्षीय बैठक में CPEC को काबुल तक ले जाने पर सहमति बनी। यह कदम भारत के लिए चुनौतियाँ और अवसर दोनों प्रस्तुत करता है।