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Waqf Bill kya Hai

 What is Waqf  Bill ?

and Why Amendment in Waqf Bill ?


वक़्फ़ बिल क्या है ? वक्फ बिल में संशोधन क्यों ?



वक़्फ़ क्या है? 
(What is Waqf Bill ?) 
वक्फ बोर्ड का अर्थ क्या होता है ? 

"वक़्फ़" एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है "ठहरना" या "रोकना"। इस्लामी कानून के तहत, वक़्फ़ उस संपत्ति को कहते हैं जो किसी व्यक्ति द्वारा धार्मिक, परोपकारी या सामाजिक कल्याण के उद्देश्य से स्थायी रूप से दान कर दी जाती है। एक बार जब कोई संपत्ति वक़्फ़ के रूप में समर्पित कर दी जाती है, तो वह "अल्लाह के नाम" मानी जाती है और उसका स्वामित्व दानकर्ता से हटकर हमेशा के लिए वक़्फ़ के अधीन हो जाता है। इसका उपयोग मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों, अस्पतालों, स्कूलों या गरीबों की मदद जैसे कार्यों के लिए किया जाता है। 

वक़्फ़ दो प्रकार का हो सकता है: 

-चल संपत्ति (Movable Property): जैसे धन, किताबें, या अन्य सामान।
-अचल संपत्ति (Immovable Property): जैसे जमीन, भवन आदि।
 

भारत में वक़्फ़ संपत्तियों का प्रबंधन वक़्फ़ बोर्ड करता है, जो एक कानूनी संस्था है। हर राज्य में अलग-अलग वक़्फ़ बोर्ड होते हैं, और इनके कामकाज की निगरानी के लिए केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के तहत केंद्रीय वक़्फ़ परिषद बनाई गई है। वर्तमान में, भारत में वक़्फ़ बोर्ड के पास लगभग 8.65 लाख अचल संपत्तियाँ हैं, जो इसे रेलवे और सेना के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक बनाती हैं। 

वक़्फ़ बोर्ड का इतिहास और कानून (History and Law of Waqf in India) 

भारत में वक़्फ़ का प्रबंधन औपनिवेशिक काल से शुरू हुआ। पहला वक़्फ़ अधिनियम 1913 में बनाया गया, जिसे बाद में 1923, 1954 और 1995 में संशोधित किया गया। वर्तमान में, वक़्फ़ अधिनियम 1995 वक़्फ़ संपत्तियों को नियंत्रित करता है। 2013 में इसमें और बदलाव किए गए, जिसके तहत वक़्फ़ बोर्ड को व्यापक अधिकार दिए गए, जैसे किसी भी संपत्ति को बिना पुख्ता सबूत के वक़्फ़ संपत्ति घोषित करने की शक्ति। 

सरकार वक़्फ़ क़ानून में बदलाव क्यों चाहती है? (Why Does the Government Want to Amend the Waqf Law?) 

केंद्र सरकार, खासकर नरेंद्र मोदी सरकार, वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक 2024 के जरिए वक़्फ़ कानून में बदलाव लाने की तैयारी कर रही है। इसके पीछे कई कारण हैं, जिन्हें सरकार और समर्थक सुधार के रूप में देखते हैं, जबकि विपक्ष और कुछ मुस्लिम संगठन इसे अधिकारों पर हमला मानते हैं। आइए, विस्तार से समझते हैं: 

1. पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना 

-सरकार का कहना है कि वक़्फ़ बोर्ड में अनियमितताएँ और भ्रष्टाचार के मामले सामने आए हैं। कई बार बोर्ड ने निजी और सरकारी संपत्तियों पर बिना ठोस सबूत के दावा किया है।
-नए विधेयक में वक़्फ़ संपत्तियों का अनिवार्य पंजीकरण और सत्यापन प्रस्तावित है। जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में संपत्ति का मूल्यांकन और राजस्व की जाँच होगी।
-उद्देश्य यह है कि वक़्फ़ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन हो और उनका उपयोग धार्मिक व सामाजिक कल्याण के लिए सुनिश्चित हो।


2. वक़्फ़ बोर्ड की असीमित शक्तियों पर अंकुश

(वक्फ बोर्ड संपत्ति अधिनियम 2013 क्या है ? )

2013 के संशोधन के बाद, वक़्फ़ बोर्ड को धारा 40 के तहत यह अधिकार मिला कि वह किसी भी संपत्ति को वक़्फ़ बोर्ड की संपत्ति घोषित कर सकता है, बिना इसके खिलाफ अदालत में चुनौती देने की अनुमति के। इससे कई विवाद पैदा हुए, जैसे मंदिरों, गुरुद्वारों और निजी जमीनों पर दावे।
सरकार इस शक्ति को सीमित करना चाहती है ताकि बोर्ड मनमाने ढंग से संपत्ति पर कब्जा न कर सके।
 

वक्फ बोर्ड को 2013 संसोधन एक्ट की धारा 40 के अंतर्गत यह अधिकार दिए गए हैं की कोई सम्पत्ति वक्फ बोर्ड की है या नहीं, इसका निर्णय लेने का अधिकार वक्फ बोर्ड के पास रहेगा, किन्तु इस धारा का दुरूपयोग होने के कारण वक्फ बोर्ड ने ऐसी बहुत सी सरकारी या निजी (खाली पड़ी जमीनों को) कुछ समय उपयोग करके वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित कर दिया जिससे बहुत सी अनियमितताएं सामने आने लगी.
माजूदा समय में किसी भी सम्पत्ति को वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति घोषित करने का अधिकार वक्फ ट्रिब्यूनल के पास है इसलिए वक्फ 2025 संसोधन से वक्फ ट्रिब्यूनल के इस अधिकार को अब स्थानीय डीएम को स्थानांतरित कर दिया गया है. जिस पर सारा विवाद है.

3. समावेशिता और विविधता 

सरकार वक़्फ़ बोर्ड को अधिक समावेशी बनाना चाहती है। नए विधेयक में गैर-मुस्लिम सदस्यों, महिलाओं, और शिया, सुन्नी, बोहरा जैसे विभिन्न मुस्लिम समुदायों के प्रतिनिधियों को शामिल करने का प्रस्ताव है।
इसका तर्क यह है कि बोर्ड में विविधता से निर्णय प्रक्रिया निष्पक्ष होगी।

4. संपत्ति विवादों का समाधान 

वक़्फ़ संपत्तियों को लेकर कई कानूनी विवाद चल रहे हैं। सरकार का दावा है कि नए कानून से इनका तेजी से निपटारा होगा। ट्रिब्यूनल की संरचना में बदलाव और हाई कोर्ट में अपील का प्रावधान इसका हिस्सा है।
सर्वेक्षण का जिम्मा अब कलेक्टर को दिया जाएगा, ताकि सरकारी संपत्तियों को वक़्फ़ से अलग किया जा सके।
 

5. मुस्लिम महिलाओं और पिछड़े वर्गों को अधिकार 

सरकार का कहना है कि मौजूदा व्यवस्था में वक़्फ़ बोर्ड पर कुछ प्रभावशाली लोगों का कब्जा है। नए बदलाव से महिलाओं और पिछड़े मुस्लिम समुदायों को प्रतिनिधित्व मिलेगा, जो लंबे समय से माँग कर रहे हैं। 



प्रस्तावित बदलाव (Key Proposed Amendments)

गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति: बोर्ड और केंद्रीय परिषद में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना अनिवार्य होगा।
महिला प्रतिनिधित्व: हर बोर्ड में कम से कम दो महिलाएँ होंगी।

संपत्ति सत्यापन: किसी भी संपत्ति को वक़्फ़ घोषित करने से पहले उसका सत्यापन जरूरी होगा।
कलेक्टर की भूमिका: सर्वेक्षण आयुक्त की जगह कलेक्टर संपत्ति की जाँच करेगा।

अलग बोर्ड: बोहरा और आगाखानी समुदायों के लिए अलग वक़्फ़ बोर्ड का प्रस्ताव।

वक्फ बिल लाने के कारण :

वक़्फ़ एक इस्लामी परंपरा है जो समाज कल्याण के लिए बनाई गई थी, लेकिन इसके प्रबंधन में खामियों के कारण विवाद बढ़े हैं। सरकार का दावा है कि वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक 2024 से पारदर्शिता, समावेशिता और बेहतर उपयोग सुनिश्चित होगा। दूसरी ओर, विरोधी इसे अल्पसंख्यक अधिकारों पर हमला मानते हैं। यह विधेयक 2 अप्रैल 2025 को संसद में पेश होने वाला है, और इसके पारित होने पर बहस और प्रभाव दोनों गहरे होंगे।


वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक 2024 मौजूद है। इसे भारत सरकार ने 8 अगस्त 2024 को लोकसभा में पेश किया था। यह विधेयक वक़्फ़ अधिनियम 1995 में संशोधन करने के लिए लाया गया है और इसका उद्देश्य वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार, पारदर्शिता और जवाबदेही लाना बताया जा रहा है।

आज की तारीख, 2 अप्रैल 2025 को, यह विधेयक संसद में चर्चा के लिए प्रस्तुत हो रहा है। संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने इस पर अपनी रिपोर्ट तैयार कर ली है, और इसमें 14 संशोधनों को मंजूरी दी गई है। सरकार इसे मौजूदा बजट सत्र (जो 4 अप्रैल 2025 तक चलेगा) में पास कराने की कोशिश कर सकती है।

मुस्लिम समुदाय इसका विरोध क्यों कर रहा है? क्या है डर ?

विरोध के कारण (Reasons for Opposition)

मुस्लिम समुदाय, खासकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और अन्य संगठनों का एक बड़ा हिस्सा, इस विधेयक का कड़ा विरोध कर रहा है। इसके पीछे कई कारण हैं:

  1. धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला: विधेयक में वक़्फ़ बोर्ड और केंद्रीय वक़्फ़ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान है। विरोधियों का कहना है कि यह इस्लामी मामलों में हस्तक्षेप है और संविधान के अनुच्छेद 26 (धार्मिक समुदायों को अपने मामले प्रबंधित करने का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
  2. उनका तर्क है कि वक़्फ़ एक धार्मिक संस्था है, और इसमें गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति से इसकी पवित्रता और स्वायत्तता खतरे में पड़ सकती है।
  3. वक़्फ़ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण का डर: विधेयक में जिला कलेक्टर को वक़्फ़ संपत्तियों का सर्वेक्षण करने और विवादित संपत्तियों का फैसला करने का अधिकार दिया गया है। मुस्लिम संगठनों को लगता है कि इससे सरकार वक़्फ़ की जमीनों पर कब्जा कर सकती है।
  4. "वक़्फ़ बाय यूज़र" (लंबे समय से उपयोग के आधार पर वक़्फ़ मान्यता) को खत्म करने का प्रस्ताव भी है, जिससे मस्जिदों, कब्रिस्तानों और मदरसों जैसी संपत्तियाँ खतरे में पड़ सकती हैं।
  5. संपत्ति हड़पने की साजिश का आरोपAIMPLB और जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे संगठनों का कहना है कि यह विधेयक वक़्फ़ संपत्तियों को कमजोर करने और उन्हें गैर-मुस्लिम हाथों में सौंपने की साजिश है। उनका दावा है कि सरकार का असली मकसद मुस्लिम समुदाय को उनकी धरोहर से वंचित करना है।
  6. संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन:
  7. विरोधियों का मानना है कि यह विधेयक अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। उनका कहना है कि यह अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभावपूर्ण है।
  8. विरोध प्रदर्शन: मुस्लिम समुदाय ने देशभर में इसके खिलाफ प्रदर्शन किए हैं। उदाहरण के लिए, मार्च 2025 में बिहार में कई संगठनों ने विरोध की घोषणा की थी। ईद और जुमातुल विदा जैसे मौकों पर काली पट्टी बाँधकर नमाज़ पढ़ी गई। AIMPLB ने इसे "सामाजिक अस्थिरता" पैदा करने वाला कदम बताया है।
सरकार का पक्ष: सरकार का कहना है कि यह विधेयक भ्रष्टाचार रोकने, महिलाओं और पिछड़े मुस्लिम समुदायों को प्रतिनिधित्व देने, और वक़्फ़ संपत्तियों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करने के लिए है। लेकिन मुस्लिम संगठनों को यह तर्क स्वीकार्य नहीं है।