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Why Delhi NCR Air Polluion Rises in winter

क्यों सर्दियों में दिल्ली-NCR ही बनता है गैस-चेंबर? 

भारी प्रदूषण के लिए सिर्फ दिल्ली के वाहन जिम्मेदार नहीं !

दिल्ली में AQI फिर 400 के पार! क्यों नहीं घट रहा स्मोग? जानिए वैज्ञानिक कारण और भौगोलिक सच्चाई

दिल्ली एनसीआर फिर गैस चेंबर बना — AQI 400 के पार


दिल्ली और एनसीआर में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) लगातार “गंभीर श्रेणी” में बना हुआ है। कई इलाकों में यह 400 से ऊपर पहुंच गया है। सरकारें भले ही हर साल ‘एंटी-स्मोग गन’, ‘ऑड-ईवन’ और ‘पराली बैन’ जैसे कदम उठाती हैं, लेकिन सवाल वही — आखिर दिल्ली का स्मोग घटता क्यों नहीं?
इस सवाल का जवाब सिर्फ “इंसानी गलती” नहीं, बल्कि भौगोलिक और वैज्ञानिक कारणों में छिपा है।





Why Delhi NCR Air Pollution Rises in Every Winter- A Scientific Research 

NB7 - Delhi (Compiled By Shristi Gora )-

दिल्ली-NCR में हर सर्दी वायु प्रदूषण क्यों बढ़ जाता है? क्या सिर्फ वाहन ही जिम्मेदार हैं या उत्तर-

पश्चिमी हवाओं, ओस और मॉइस्चर का असर भी है? 

पढ़ें पूरी वैज्ञानिक रिपोर्ट।”

अक्टूबर 2025 में दिल्ली-NCR देश का सबसे प्रदूषित इलाका रहा। हरियाणा का धारूहेड़ा 
शहर पूरे महीने खतरनाक स्तर  तक पहुँचा — जो कि राष्ट्रीय मानक से 
77 % दिनों में अधिक थी। इसी क्रम में रोहतक, गाजियाबाद, नोएडा, बल्लभगढ़, दिल्ली, 
भिवाड़ी, ग्रेटर नोएडा, हापुड़ और गुरुग्राम भी सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल रहे

क्यों बनता है दिल्ली में इतना घना स्मोग या घना कोहरा ?

1. भौगोलिक स्थिति का बड़ा रोल

दिल्ली भारत के उत्तर मैदानी क्षेत्र में बसी है — जहां की जमीन लगभग समतल है। पश्चिम में थार का रेगिस्तान, उत्तर में हिमालय और बीच में यमुना जैसी नमी देने वाली नदी — यह तीनों मिलकर हवा के प्रवाह को प्रभावित करते हैं।
ठंड के मौसम में जब तापमान नीचे जाता है, तो हवा ठंडी और भारी हो जाती है। ओस बनने से वातावरण नम रहता है, जिससे हवा का ऊपर उठना लगभग बंद हो जाता है। ऐसे में प्रदूषक कण  ज़मीन के पास ही फंस जाते हैं और स्मोग की मोटी परत बना देते हैं।

2 - उत्तर-पश्चिमी हवाएं और पराली का धुआं

हर साल नवंबर में पंजाब और हरियाणा से आने वाली उत्तर-पश्चिमी हवाएं दिल्ली की ओर बहती हैं। ये हवाएं अपने साथ पराली के धुएं और कार्बन के सूक्ष्म कण भी ले आती हैं।
इन हवाओं में नमी होती है, जिससे यह धुआं दिल्ली की ठंडी हवा में मिलकर और भी घना हो जाता है। वैज्ञानिक इसे “इनवर्ज़न लेयर इफेक्ट” कहते हैं, जिसमें ठंडी हवा के ऊपर गर्म हवा की परत बन जाती है — और प्रदूषण नीचे फंस जाता है।

3. स्थानीय प्रदूषण की भूमिका

दिल्ली-एनसीआर में 30% से अधिक प्रदूषण स्थानीय स्रोतों से आता है —

-वाहन उत्सर्जन (गाड़ियों का धुआं)

-निर्माण कार्यों की धूल

-कचरा जलाना या ठण्ड से बचने के लिए लोगों का लकड़ी -प्लास्टिक की पैकेजिंग वेस्ट का     जलना 

-डीज़ल जनरेटर ( दिल्ली से सटे क्षेत्रों -गाजिअबाद - मेरठ -फरीदाबाद -सोनीपत- नोएडा के आसपास के कस्बों  में डीजल से चलने वाले जेनसेट या वाहनों का  लापरवाही  से बहुतायत प्रयोग) 

-औद्योगिक धुआं (गाजिअबाद, सोनीपत, पानीपत, बागपत, मेरठ,फरीदाबाद, गुडगाँव के आसपास के शहरों से आनेवाला औद्योगिक धुआं)

जब यह सब ठंडी और धीमी हवाओं में घुलते हैं, तो यह “स्थायी स्मोग परत” का रूप ले लेते हैं।

क्या कहता है वैज्ञानिक नजरिया — जब प्राकर्तिक हवा खुद फंस जाती है

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और SAFAR (System of Air Quality and Weather Forecasting And Research) के शोधों के अनुसार,

->नवंबर-दिसंबर में विंड स्पीड 2-4 किमी/घंटा तक रह जाती है।

->तापमान 10°C से कम होने पर हवा की ऊर्ध्वाधर गति रुक जाती है।

->इससे प्रदूषण कण “ट्रैप” हो जाते हैं और स्मोग नहीं छंटता, भले ही बारिश या तेज हवा न आए।


यानी यह केवल “मानव निर्मित” नहीं, बल्कि मौसम और भौगोलिक परिस्थितियों का सम्मिलित प्रभाव है।


पिछले दस वर्षों के आंकड़ों से पता चलता है कि सर्दियों के महीनों (अक्टूबर से जनवरी) में दिल्ली-

NCR की वायु गुणवत्ता हर बार खतरनाक स्तर पर पहुँच जाती है — जबकि गर्मी में प्रदूषण 

तुलनात्मक रूप से कम होता है।

दरअसल -हर साल जैसे ही उत्तर भारत में ठंड दस्तक देती है, दिल्ली-NCR की हवा धुएं-धूल-ओस 

के भारी कुहासे में बदल जाती है। AQI ‘गंभीर’ स्तर को छू जाता है, अस्पतालों में सांस लेने में परेशान  

होने वाले मरीजों की भीड़ बढ़ जाती है, और सोशल मीडिया पर “Delhi Smog” ट्रेंड करने लगता है।

लेकिन सवाल ये है — अगर दिल्ली-NCR में इतने ज़्यादा वाहन हैं, तो गर्मियों में प्रदूषण उतना क्यों 

नहीं बढ़ता?

क्या वास्तव में वायु  प्रदूषण का कारण- सिर्फ गाड़ियाँ और फैक्ट्रियाँ हैं  या कोई और ?

या फिर इसके पीछे प्राकृतिक और भू-भौगोलिक घटनाएँ भी हैं जो अब तक पूरी तरह समझी नहीं गईं हैं ?

सर्दियों में ही क्यों हवा जहरीली होती है?

ठंडी हवाएँ और “एयर इन्वर्ज़न” या निचली हवाओ का ओस के कणो से ठंडा-धीमा और भारी हो जाना

सर्दियों में जैसे-जैसे तापमान गिरता है, धरती की सतह ठंडी हो जाती है। ऊपर की हवा अपेक्षाकृत 

गर्म रहती है — इसे “थर्मल इन्वर्ज़न (Thermal Inversion)” कहते हैं।

इस स्थिति में ठंडी हवा ऊपर नहीं उठ पाती और जो धुआं, धूल, औद्योगिक उत्सर्जन, वाहन का धुआं 

होता है — वह निचले वायुमंडल में फंस जाता है।

परिणाम: हवा का “वेंटिलेशन रेट” घटता है और PM2.5, PM10, NO₂, SO₂ जैसे कणों की मात्रा 

कई गुना बढ़ जाती है।


नमी, ओस और मॉइस्चर का जाल

सर्दियों की सुबहों में जो हल्की धुंध या कोहरा दिखता है, उसमें केवल जल-कण नहीं, बल्कि धूल और कालिख (Soot Particles) भी घुले होते हैं।

जब वायुमंडल में नमी बढ़ती है, तो ये सूक्ष्म धूलकण मॉइस्चर से चिपककर भारी हो जाते हैं और जमीन के पास ही तैरते रहते हैं।

यह मिश्रण “स्मॉग” बनाता है — यानी Smoke + Fog।


📌 वैज्ञानिक दृष्टि से, नमी प्रदूषकों को ऊपर उठने नहीं देती, बल्कि उन्हें “ट्रैप” कर देती है। इन ठंडी नम हवाओं में बाहर से आये हुवे धुल धुवें के कण भी फंस जाते हैं इसके साथ ही सुबह शाम आने वाले कोहरे में अधिक पोलुशन के कण ऊपर उठ नहीं पाते और वातावरण में नीचे ही बने रहते हैं जिससे घना कोहरा बन जाता है 


उत्तर-पश्चिमी हवाएँ — पाकिस्तान, पंजाब और हरियाणा से आने वाला ‘धुएं का झोंका’

हर साल अक्टूबर-नवंबर में हवा की दिशा बदलती है। यह हवा उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व यानी 

पंजाब-हरियाणा-पाकिस्तान से दिल्ली की ओर चलती है।

इन इलाकों में इसी समय पराली जलाने की चरम अवधि होती है।

NASA के सैटेलाइट डेटा के अनुसार, पाकिस्तान-लाहौर-पंजाब बेल्ट में भी बर्निंग-स्पॉट्स पाए जाते हैं।

इन हवाओं के साथ धुआं और कालिख दिल्ली-NCR तक पहुँचता है और स्थानीय प्रदूषण के साथ 

मिलकर AQI को “Severe” श्रेणी में पहुँचा देता है।


स्थिर वायुमंडल और “वेंटिलेशन इंडेक्स” में गिरावट

गर्मियों में हवा गर्म होने के कारण ऊपर उठती है, जिससे हवा में मौजूद धूल-धुआं तेजी से फैल या बिखर जाता है।

लेकिन सर्दियों में तापमान कम होने के कारण हवा “स्थिर” (Stable) हो जाती है।

इससे प्रदूषण ऊपर नहीं जा पाता — और एक घुटन भरा एयर-लॉक बन जाता है।

इस वजह से सुबह-शाम विजिबिलिटी घटकर 200–300 मीटर तक रह जाती है।


छिपे हुवे कारण जिन पर ध्यान नहीं  — NCR के औद्योगिक क्लस्टर और औसत हवा की अति धीमी गति

हरियाणा, राजस्थान, यूपी की सीमाओं पर — धारूहेड़ा, भिवाड़ी, गुरुग्राम, नोएडा — में भारी 

औद्योगिक क्लस्टर हैं

इन इलाकों में हवा की औसत गति सर्दियों में 5 km/h से घटकर 2 km/h हो जाती है।

धीमी ठंडी हवाएँ ऊपर नहीं उठ पाती और प्रदूषकों को फैलने नहीं देतीं — परिणाम: “स्थानीय 

प्रदूषण का जमाव”।



पिछले 10 वर्षों में सर्दियों का ट्रेंड (2015–2025)

वर्षदिल्ली का औसत PM2.5 (µg/m³)सबसे खराब महीनामुख्य कारण

2015

                      120

नवंबर


पराली, ठंड, वाहनों का उत्सर्जन
2016                      134नवंबरस्मॉग आपदा (स्कूल बंद)
2017                      118दिसंबरइन्वर्ज़न, कम हवा
2018                     125नवंबरऔद्योगिक क्लस्टर का असर
2019                     132नवंबरपराली और कम हवा
2020                      98दिसंबरलॉकडाउन का प्रभाव
2021                     110नवंबरफसल अवशेष, वाहन
2022                    118नवंबरस्मॉग बेल्ट स्थिर
2023                      115नवंबरधूल और पराली मिश्रण
2024                    119नवंबरइन्वर्ज़न और नमी
2025                    123अक्टूबरधारूहेड़ा केंद्र में


(डेटा: CPCB, SAFAR, IMD विश्लेषण रिपोर्टों से संकलित)


अंत में- प्रदूषण के लिए सिर्फ ‘दिल्ली के वाहन’ की गलती नहीं !


यह एक क्षेत्रीय मौसम-प्रणाली की समस्या है, जो उत्तर-पश्चिम से पूर्व तक फैली है।

“सर्दियों की हवा” अपने साथ धुएं, धूल और नमी का सम्मिश्रण लेकर आती है।

वाहनों और स्थानीय कारकों का योगदान जरूर है, पर वे अकेले जिम्मेदार नहीं।

जब तक क्रॉस-बॉर्डर प्रदूषण (Trans-boundary Pollution) पर भारत-पाकिस्तान-हरियाणा-

पंजाब-राजस्थान के बीच सामूहिक नियंत्रण नहीं होगा, तब तक NCR में सर्दियों की “ज़हरीली हवा” 

हर साल लौटेगी।


फिर समाधान क्या हैं?

-रियल-टाइम मौसम आधारित वायु नीति – तापमान और हवा की दिशा के अनुसार इंडस्ट्री-एक्टिविटी शेड्यूल।

-पंजाब-हरियाणा-पाकिस्तान बेल्ट पर संयुक्त मॉनिटरिंग नेटवर्क।

-कोहरे-धुआं-इन्वर्ज़न पूर्वानुमान प्रणाली (जैसे IMD का SmogCast)।

-स्थानीय औद्योगिक क्षेत्रों में शून्य-उत्सर्जन मानक।

-जन-भागीदारी – AQI अलर्ट पर निजी वाहन उपयोग घटाना, मास्क और पौधारोपण को प्रोत्साहित करना।

अक्टूबर में सबसे साफ हवा कहां मिली?

जब दिल्ली-NCR दमघोंटू धुंध में डूबी रही, तब सब साफ़ हवा किस शहर की थी ?


मेघालय का शिलांग देश का सबसे स्वच्छ शहर बनकर उभरा —

जहाँ अक्टूबर 2025 में PM 2.5 का औसत स्तर मात्र 10 µg/m³ दर्ज किया गया।

यह स्तर न केवल भारत के राष्ट्रीय मानक (60 µg/m³) से बहुत नीचे था,

बल्कि WHO के सुरक्षित स्तर (15 µg/m³) को भी पार नहीं किया।

सबसे साफ शहरों की सूची में —

👉 कर्नाटक के 4 शहर,

👉 तमिलनाडु के 3 शहर,

और मेघालय, सिक्किम व छत्तीसगढ़ के 1-1 शहर शामिल रहे।

दिलचस्प बात यह है कि देश के 249 में से 212 शहरों ने अक्टूबर में

भारत के मानक के अनुरूप स्वच्छ हवा दर्ज की —

जो दर्शाता है कि समस्या केवल दिल्ली-NCR के माइक्रो-क्लाइमेट में सबसे ज्यादा प्रदूषण करने वाले कारक मौजूद हैं ।