तो फिर निठारी का असली क़ातिल कौन था?
जब कोर्ट ने कोली को सभी केसों से मुक्त कर दिया…
नोएडा का निठारी कांड — यह नाम सुनते ही आज भी देश की रूह कांप उठती है। दिसंबर 2006 में
सेक्टर-31 के निठारी गांव से बच्चों और युवतियों के कंकाल निकलने शुरू हुए थे। सड़क के उस
छोटे-से मकान D-5 की नाली से जो भयावह सच्चाई निकली, उसने पूरे देश को हिला दिया था। 16
साल बाद, 2025 में, सुप्रीम कोर्ट ने इस कांड के मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली को सभी मामलों से बरी
कर दिया। अब सवाल एक बार फिर ज़िंदा है — अगर कोली दोषी नहीं था,
तो असली क़ातिल कौन था?
कोली का कबूलनामा (confession) अदालत ने जबर्दस्ती कराया गया माना। उसे लंबे समय तक पुलिस हिरासत में रखकर बयान दिलवाया गया था।
जो हथियार और कपड़े बरामद दिखाए गए, उन पर डीएनए या खून के निशान का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला।
घटनास्थल की फोरेंसिक जांच बेहद लापरवाही से हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष की पूरी केस-फाइल “कमज़ोर और त्रुटिपूर्ण जांच” पर आधारित थी।
कोली का कबूलनामा (confession) अदालत ने जबर्दस्ती कराया गया माना। उसे लंबे समय तक पुलिस हिरासत में रखकर बयान दिलवाया गया था।
जो हथियार और कपड़े बरामद दिखाए गए, उन पर डीएनए या खून के निशान का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला।
घटनास्थल की फोरेंसिक जांच बेहद लापरवाही से हुई।
हड्डियाँ और अवशेष सही तरीके से संरक्षित नहीं किए गए।
कई मामलों में एक-जैसे सबूतों के बावजूद पहले से ही अदालतें कोली को बरी कर चुकी थीं। इसलिए
कई मामलों में एक-जैसे सबूतों के बावजूद पहले से ही अदालतें कोली को बरी कर चुकी थीं। इसलिए
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “शक को सज़ा में नहीं बदला जा सकता।”
और “ऑर्गन ट्रेड” या किसी संगठित अपराध नेटवर्क की संभावना को नजरअंदाज किया।
असंभव-सा लगता है।”
“शरीरों को काटने का पैटर्न किसी प्रशिक्षित व्यक्ति या ऐसे नेटवर्क की ओर इशारा करता है जो अंग-तस्करी (organ trade) या रिचुअल किलिंग्स से जुड़ा हो सकता है।”
“परंतु जांच को एक ही दिशा में मोड़ दिया गया — कोली और उसके मालिक पंढेर तक — ताकि राजनीतिक और सामाजिक दबाव शांत हो जाए।”
निठारी का मामला भारतीय न्याय प्रणाली की कमजोरी के लिए एक स्थायी सबक बन गया है —
कि किसी अपराध की वीभत्सता से न्याय का संतुलन नहीं डगमगाना चाहिए,
और यह कि सच्चाई कभी-कभी जांच की फाइलों में दबी रह जाती है।
16 साल की लम्बी कानूनी यात्रा के बाद एक सवाल फिर हवा में तैर रहा है:
“अगर सुरेंद्र कोली निर्दोष था — तो फिर निठारी का असली क़ातिल कौन था?”
क्या जांच ने असली दिशा खो दी थी?
पूर्व सीबीआई अफ़सरों और फोरेंसिक विशेषज्ञों के अनुसार, 2006-07 की शुरुआती जांच में स्थानीय पुलिस ने सबसे बड़ी गलती कीगायब बच्चों की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया,
घटनास्थल को देर से सील किया,
और “ऑर्गन ट्रेड” या किसी संगठित अपराध नेटवर्क की संभावना को नजरअंदाज किया।
अपराध इतना वीभत्स था कि पुलिस ने जल्दी-जल्दी गिरफ्तारी कर “परिणाम” दिखाने की कोशिश की।
इस जल्दबाज़ी ने असली अपराधी या नेटवर्क तक पहुँचने के सभी रास्ते बंद कर दिए।
गुप्तचर-स्तर पर इस केस को देखने वाले कई रिटायर्ड इंटेलिजेंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि:
“कोली के कबूलनामे में जिस तरह से घटनाओं का विवरण था, वह एक अनपढ़ व्यक्ति के लिए
गुप्तचर-स्तर पर इस केस को देखने वाले कई रिटायर्ड इंटेलिजेंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि:
“कोली के कबूलनामे में जिस तरह से घटनाओं का विवरण था, वह एक अनपढ़ व्यक्ति के लिए
असंभव-सा लगता है।”
“शरीरों को काटने का पैटर्न किसी प्रशिक्षित व्यक्ति या ऐसे नेटवर्क की ओर इशारा करता है जो अंग-तस्करी (organ trade) या रिचुअल किलिंग्स से जुड़ा हो सकता है।”
“परंतु जांच को एक ही दिशा में मोड़ दिया गया — कोली और उसके मालिक पंढेर तक — ताकि राजनीतिक और सामाजिक दबाव शांत हो जाए।”
अब पीड़ित परिवारों के दर्द का क्या ! ये कैसा इन्साफ ?
आज निठारी के उस गलियारे में रहने वाले लोग पूछते हैं —पीड़ित परिवारों का कहना है कि उन्हें 16 साल की जंग के बाद भी न न्याय मिला, न जवाब। अब जब“अगर कोली निर्दोष था, तो हमारे बच्चों को किसने मारा? किसने उन हड्डियों को हमारे घरों के पीछे दफनाया?”
सर्वोच्च अदालत ने कोली को मुक्त कर दिया है, निठारी के लोग एक नए जांच आयोग या “सिट” (SIT) की मांग कर रहे हैं ताकि सच्चाई सामने आए।
निठारी का मामला भारतीय न्याय प्रणाली की कमजोरी के लिए एक स्थायी सबक बन गया है —
कि किसी अपराध की वीभत्सता से न्याय का संतुलन नहीं डगमगाना चाहिए,
और यह कि सच्चाई कभी-कभी जांच की फाइलों में दबी रह जाती है।
16 साल की लम्बी कानूनी यात्रा के बाद एक सवाल फिर हवा में तैर रहा है:
“अगर सुरेंद्र कोली निर्दोष था — तो फिर निठारी का असली क़ातिल कौन था?”
यदि ये अपराध सुरेंद्र कोली ने नहीं किये थे तो सुरेंद्र कोली और उसके मालिक पंढेर के पुलिस द्वारा की गयी दुर्दशा और जेल में बिना अपराध बिताये गए जीवन के इतने समय की कीमत कौन देगा। असली अपराधी तो मुस्करा रहा होगा !और भारतीय न्यायव्यवस्था और पुलिस की कार्यप्रणाली की खामियों पर हँस रहा होगा।

.webp)